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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/३३

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३२ मानसरोवर भी ची-चपड़ किया, तो आस्तीन चढ़ा, पैतरे बदल कर खड़ा हो जाता हूँ। फिर कौन है, जो सामने ठहर सके । सेठजी को रोमाच हो पाया। हाथ में एक सोटा तो था, पर उसका व्यवहार करने की शक्ति का उनमे अभाव था। आज बुरे फंसे, न जाने किस मनहूस का मुंह देखकर घर से चले थे । कहीं यह दुष्ट उलझ पड़े, तो दस- पाँच दिन हल्दी-सोठ पीना पड़े। अब से भी कुशल है, यहाँ उतर जाऊँ, जो बच जाय वही सही। भीगी बिल्ली बनकर बोले-अच्छा, अब रोक लो खां साहब, मेरा गांव आ गया । बोलो, तुम्हें क्या दे दूं? इक्केवाले ने घोड़ी को एक चाबुक और लगाया और निर्दयता से बोला--मजूरी सोच लो भाई । तुमको न बैठाया होता, तो तीन सवारियां बैठा लेता। तीनों चार-चार आने भी देते, तो बारह आने हो जाते । तुम अाठ ही आने दे दो। सेठजी की बधिया बैठ गई । इतनी बड़ी रकम उन्होंने उम्र भर इस मद मे नहीं खर्च की थी । इतनी सी दूर के लिए इतना केराया, वह किसी तरह न दे सकते थे । मनुष्य के जीवन मे एक ऐसा अवसर भी आता है, जब परि- रणाम की उसे चिंता नहीं रहती। सेठजी के जीवन मे यह ऐसा ही अवसर था । अगर पाने दो-अाने की बात होती, तो खून का चूंट पीकर दे देते ; लेकिन आठ आने के लिए कि जिसका द्विगुण एक कलदार होता है, अगर तू-तू मै-मै ही नही, हाथापाई की भी नौबत आये, तो वह करने को तैयार थे। यह निश्चय करके वह दृढ़ता के साथ बैठे रहे । सहसा सड़क के किनारे एक झोंपड़ा नज़र श्राया । इक्का रुक गया, सेठजी उतर पड़े और कमर से एक दुअन्नी निकालकर इक्केवान की ओर 7 बढाई। इक्केवान ने सेठजी के तीवर देखे, तो समझ गया, ताव बिगड़ गया। चाशनी कड़ी होकर कठोर हो गई । अब यह दांतों से लड़ेगी। इसे चुबला- कर ही मिठास का आनद लिया जा सकता है। नम्रता से बोला-मेरी ओर से इसकी रेवड़ियां लेकर बाल-बच्चों को खिला दीजिएगा। अल्लाह आप को सलामत रखे।