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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/४८

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दो करें देखकर और तेज हो गये । वह उसे जता देना चाहते थे, कि इस विषय में मैं एक रेखा तक जा सकता हूँ, उसके आगे किसी तरह नहीं जा सकता। बोले-मैं यह कभी पसद न करूँगा कि कोई बाजारी औरत किसी वक्त और किसी भेष में मेरे घर आये । रात को अकेले या सूरत बदलकर आने से इस बुराई का असर नहीं मिट सकता। मै समाज के दड से नहीं डरता, इस नैतिक विष से डरता हूँ। सुलोचना अपने विचार मे मर्यादा-रक्षा के लिए काफी आत्मसमर्पण कर चुकी थी। उसकी आत्मा ने अभी तक उसे क्षमा न किया था । तीव्र स्वर में बोली- -क्या तुम चाहते हो कि मै इस कैद मे अकेले जान दे ? कोई तो हो जिससे आदमी हसे, बोले । रामेद्र ने गर्म होकर कहा-हॅसने-बोलने का इतना शौक था, तो मेरे साथ विवाह न करना चाहिए था । विवाह का बधन बड़ी हद तक त्याग का बधन है । जब तक ससार मे इस विधान का राज्य है, और स्त्री कुलमर्यादा की रक्षक समझी जाती है, उस वक्त तक कोई मर्द यह स्वीकार न करेगा कि उसकी पत्नी बुरे आचरण के प्राणियों से किसी प्रकार का ससर्ग रक्खे । कुंवर साहव समझ गये कि इस वाद-विवाद से रामेंद्र और भी जिद पकड़ लेंगे, और मुख्य विषय लुप्त हो जायगा , इसलिये नम्र स्वर मे बोले- लेकिन बेटा, यह क्यों ख्याल करते हो कि एक ऊँचे दरजे की पढ़ी लिखी स्त्री दूसरों के प्रभाव मे आ जायगो, अपना प्रभाव न डालेगी ? रामेंद्र-इस विषय मे शिक्षा पर मेरा विश्वास नहीं । शिक्षा ऐसी कितने बातो को मानती है, जो राति-नीति और परपरा की दृष्टि से त्याज्य है। अगर पांव फिसल जाय तो हम उसे काटकर फेंक नहीं देते , मैं 57 analogy के सामने सिर झुकाने को तैयार नहीं हूँ। मै स्पष्ट कह देना चाहता हूँ कि मेरे साथ रहकर पुराने सबंधी का त्याग करना पड़ेगा! इतना ही नहीं, मन तो ऐसा बना लेना पड़ेगा कि ऐसे लोगों से उसे खुद घृणा हो । हमें इस तरह अपना सस्कार करना पड़ेगा कि समाज अपने अन्याय पर लजित हो, न यह कि हमारे पाचरण ऐसे भ्रष्ट हो जाय कि दूसरों की निगाह में, यह तिरस्कार औचित्य का स्थान पा जाय। पर