पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/४९

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मानसरोवर . सुलोचना ने उद्धत होकर कहा-स्त्री इसके लिए मजबूर नही है कि वह आपकी आँखों से देखे और आपके कानों से सुने । उसे यह निश्चय करने का अधिकार है कि कौन-सी चीज़ उसके हित की है, कौन सी नहीं। कुँवर साहब भयभीत होकर बोले-सिल्लो, तुम भली जाती हो कि बातचीत मे हमेशा मुलायम शब्दो का व्यवहार करना चाहिए। हम झगड़ा नहीं कर रहे हैं, केवल एक प्रश्न पर अपने अपने विचार प्रकट कर रहे हैं । सुलोचना ने निर्भीकता से कहा--जी नहीं, मेरे लिए बेडियाँ तैयार की जा रही हैं । मैं इन बेडियो को नहीं पहन सकती। मैं अपनी आत्मा को उतना ही स्वाधीन समझतो हूँ, जितना कोई मर्द समझता है । रामेंद्र ने अपनी कठारता पर कुछ लजित होकर कहा-- मैंने तुम्हारी अात्मा की स्वाधीनता को छीनने की कभी इच्छा नहीं की । और न मैं इतना 'विचारहीन हूँ। शायद तुम भी इसका समर्थन करोगी; लेकिन क्या तुम्हें विपरीत मार्ग पर चलते देखू , तो मैं समझा भी नहीं सकता ? सुलोचना- -नसी तरह, जैसे मै तुम्हे समझा सकती हूँ · तुम मुझे मजबूर नही कर सकते। रामेंद्र-मैं इसे नहीं मान सकता । सुलोचना--अगर मैं अपने किसी नातेदार से मिलने जाऊँ, तो आपकी उजत में बट्टा लगता है | क्या इसी तरह आप यह स्वीकार करेंगे कि आपका व्यभिचारियों से मिलना जुलना मेरी इज्ज़त में दाग़ लगाता है ! रामेंद्र--11, मै यह मानता हूँ। सुलोचना--श्रापका कोई व्यभिचारी भाई आ जाय, तो आप उसे दर- वाज़े से भगा देगे ? रामेंद्र-तुम मुझे इसके लिए मजबूर नहीं कर सकतीं। सुलोचना--ओर आप मुझे मजबूर कर सकते हैं ? 4 'वेशक ।' 'क्यों। 'इसी लिए कि मैं पुरुष हूँ, इस छोटे से परिवार का मुख्य अग हूँ। इसी लिए कि तुम्हारे ही कारण मुझे ..रामेंद्र कहते कहते रुक गये ; पर सुलोचना ..