पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/७२

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ढपोरसंख Y . है। जब मैंने आपका नाम लिया, कि वह मेरे बड़े भाई के तुल्य हैं, तो वह बहुत प्रसन्न हुए । अापके लेखों को वह बड़े श्रादर से देखते हैं । मैने कुछ खिन्न होकर कहा-यह तो सब कुछ है , लेकिन इस समय तुम्हे विवाह करने की सामर्थ्य भी नहीं है । और कुछ न हो, तो पचास रुपये की बंधी हुई आमदनी तो होनी ही चाहिए। जोशी ने कहा-भाई साहब, मेरा उद्धार विवाह ही से होगा। मेरे घर से निकलने का कारण भी विवाह ही था और घर वापस जाने का कारण भी विवाह ही होगा। जिस समय प्रमिला हाथ बांधे हुए जाकर पिताजी के चरणों पर गिर पड़ेगी, उनका पाषाण हृदय भी पिघल जायगा। समझेगे, विवाह तो हो ही चुका, अब वधू पर क्यों जुल्म किया जाय । जब उसे आश्रय मिल जायगा, तो मुझे झक-मारकर बुलायेगे। मैं इसी जिद पर घर से निकला था, कि अपना विवाह अपने इच्छानुसार बिना कुछ लिये दिये कलॅगा और वह मेरी प्रतिज्ञा पूरी हुई जा रही है । प्रमिला इतनी चतुर है, कि वह मेरे- घरवालों को चुटकियो में मना लेगी। मैंने तख़मीना लगा लिया है। कुल तीन सौ रुपये खर्च होंगे और यही तीन-चार सौ रुपये मुझे ससुराल से मिलेगे! मैंने सोचा है, प्रमिला को पहले यहीं लाऊँगा। यहीं से वह मेरे घर पत्र लिखेगी और आप देखिएगा तीसरे ही दिन चचा साहब गहनों की पिटारी लिये आ पहुँचेगे । विवाह हो जाने पर वह कुछ नहीं कर सकते। इसलिए मैंने विवाह की खबर किसी को नहीं दी। मैंने कहा-लेकिन मेरे पास तो अभी कुछ भी नहीं है भाई । मैं तीन सौ रुपये कहाँ से लाऊँगा? जोशी ने कहा-तीन सौ रुपये नकद थोड़े ही लगेंगे। कोई सौ रुपये के कपड़े लगेगे। सौ रुपये की दो-एक सोहाग की चीजे बनवा लू गा और सौ रुपये राह खर्च समझ लीजिए । उनका मकान काशीपुर में है। वहीं से विवाह करेंगे । यह वगाली सोनार जो सामने है, आपके कहने से एक सप्ताह के वादे पर जो जो चोज़े मांगूंगा, दे देगा। बजाज़ भी आपके कहने से दे देगा। नकद मुझे कुल सौ रुपये की ज़रूरत पडेगी और ज्यों ही उधर से लौटा त्यों ही दे दूंगा। बारात मे आपं और माथुर के सिवा कोई - तीसरा >