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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 4.djvu/८

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प्रेरणा

से कहा, तो वह भी चकरा गये; मगर उन्हें भी जान-बूझकर मखी निर्गलनी पड़ी। मैं कदाचित् स्वभाव ही से निराशावादी हूँ। अन्य अध्यापकों को मैं सूर्यप्रकाश के विषय में जरा भी चिंतित न पाता था। मानो ऐसे लड़कों का स्कूल में अाना कोई नई बात नहीं; मगर मेरे लिए वह एक विकट रहस्य था। अगर यही ढग रहे, तो एक दिन या तो जेल में होगा, या पागलखाने में।

( २ )

उसी साल मेरा तबादला हो गया।, यद्यपि यहाँ का जलवायु मेरे अनुकूल था, प्रिसिपल और अन्य अध्यापकों से मैत्री हो गई थी, मगर मैं अपने तबादले से खुश हुआ; क्योंकि सूर्यप्रकाश मेरे मार्ग का कांटा न रहेगा! लड़कों ने मुझे विदाई की दावत दी, और सबके सब स्टेशन तक पहुँचाने आये।" उस वक्त सभी लड़के आँखो में आँसू भरे हुए थे। मैं भी अपने आँसुओं को न रोक सका । सहसा मेरी निगाह सूर्यप्रकाश पर पड़ी, जो सबसे पीछे लज्जित खड़ा था। मुझे ऐसा मालूम हुआ कि उसकी आँखे भी भींगी थीं। मेरा जी बार-बार चाहता था कि चलते-चलाते उससे दो-चार बातें कर लूँ। शायद वह भी मुझसे कुछ कहना चाहता था, मगर न मैंने पहले बाते की, न उसने; हालांकि मुझे बहुत दिनों तक इसका खेद रहा। उसकी झिझक तो क्षमा के योग्य यी ; पर मेरा अवरोध अक्षम्य था। सभव था, उस करुणा और ग्लानि की दशा में मेरा दो-चार निष्कपट बाते उसके दिल पर असर कर जाती; मगर इन्हीं खोये हुए अवसरों का नाम तो जीवन है। गाड़ी मदगति से चली। लड़के कई कदम तक उसके साथ दौडे। मैं खिड़की के बाहर सिर निकाले खड़ा था। कुछ देर तक मुझे उनके हिलते हुए रूमाल नजर आये। फिर वह रेखाएँ अाकाश में विलीन हो गई; मगर एक अल्पकाय मूर्ति अब भी प्लेटफार्म पर खड़ी थी। मैंने अनुमान किया, वह सूर्यप्रकाश हैं । उस समय मेरा हृदय किसी विकल कैदी की भांति घृणा, मालिन्य और उदासीनता के वधनों को तोड़-तोड़कर उसके गले मिलने के लिए तड़प उठा।

नये स्थान की नई चिंताओं ने बहुत जल्द मुझे अपनी पोर याकर्षित कर लिया। पिछले दिनों की याद एक हसरत बनकर रह गई। न किसी का