लांछन मुशी श्यामकिशोर के द्वार पर मुन्नू मेहतर ने झाडू लगाई, गुसलखाना धो-चाकर सा किया, और तव द्वार पर आकर गृहिणी से बोला -माजी, देख लीजिए, सब साफ कर दिया । आज कुछ खाने को मिल जाय, सरकार ! देवी रानो ने द्वार पर आका कहा -अभी तो तुम्हे महीना पाये दस दिन भी नहीं हुए । इतनी जल्द फिर मांगने लगे ? मुन्नू -क्या करूँ माजी, खर्च नहीं चलता। अकेला आदमी, घर देखू कि काम करूं? थैलो कहाँ देवी-तो ब्याह क्यों नहीं कर लेते ? मुन्नू-रुपये मांगते हैं, सरकार ! यहाँ खाने से नहीं बचता, से लाऊँ ? देवी--अभी तो तुम जवान हो, कब तक अकेले बैठे रहोगे ? मुन्नू - हजूर की इतनी निगाह है, तो कहीं-न-कहीं ठीक हो ही जायगी , सर- कार कुछ मदद करेंगी न ? देवी-हां-हाँ, तुम ठीक-ठाक करो, मुझसे जो कुछ हो सकेगा, मैं भी दे दूंगी। मुन्नू-सरकार का मिजाज वड़ा अच्छा है । हजूर इतना खयाल करतो हैं । दूसरे घरों में तो मालकिने वात भी नहीं पूछतीं । सरकार को अल्लाह ने जैसी सकल-सूरत दी है, वैसा ही दिल भी दिया है । अल्लाह जानता है, हजूर को देखकर भूख-प्यास जाती रहती है। बड़े-बड़े घर की औरतें देखी हैं, मुदा हजूर के तलुओं की बरावरी भी नहीं कर सकतीं। देवी- चल झूठे ! मैं ऐसी कौन बड़ी खूबसूरत हूँ। -अब सरकार से क्या कहूँ। बड़ी-बड़ी खत्रानियो को देखता हूँ , मगर गोरेपन के सिवा और कोई बात नहीं। उनमें यह नमक कहाँ सरकार
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