पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/११७

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लाछन ११३ O 2 बाबू साहब ने बेले का गजरा रूमाल से निकालकर देवी के गले में डाल दिया किन्तु देवी के मुख पर प्रसन्नता का कोई चिह्न न दिखाई दिया । तिरछी निगाहो से देखकर बोलीं-आप आज-कल दालमण्डो की सैर बहुत किया करते हैं ? श्याम -कौन ? मैं देवी-जी हाँ, तुम । मुझसे तो लाइब्रेरी का बहाना करके जाते हो, और वहाँ जलसे होते है ! श्याम.---बिलकुल मुह, सोलहो आने झूठ । तुमसे कौन कहता था ? यही मुन्नू ? देवी मुन्नू ने मुझसे कुछ नहीं कहा , पर मुझे तुम्हारी टोह मिलती रहती है। श्याम. -तुम मेरी टोह मत लिया करो । शक करने से आदमी शक्की हो जाता है, और तव बड़े-बड़े अनर्थ हो जाते हैं । भला, मैं दालमण्डी क्यों जाने लगा ? तुमसे बढकर दालमण्डी में और कौन है ? मैं तो तुम्हारो इन मद-भरी आँखों का आशिक हूँ। अगर अप्सरा भी सामने आ जाय, तो आँख उठाकर न देखें । आज शारदा कहाँ है ? देवी-नीचे खेलने चली गई है ? -नीचे मत जाने दिया करो । इक्के, मोटरें, वग्घियां दौड़ती रहती हैं। न-जाने कब क्या हो जाय । आज ही अरदलोवाज़ार में एक वारदात हो गई । तीन लड़के एक साथ दव गये। देवी-तीन लड़के !! वड़ा ग़ज़ब हो गया। किसकी मोटर थी ? -इसका अभी तक पता नहीं चला । ईश्वर जानता है, तुम्हें यह गजरा बहुत खिल रहा है। देवी-( मुसकिराकर ) चलो, बातें न बनाओ। (२) तीसरे दिन मुन्नू ने देवी से कहा-सरकार, एक जगह सगाई ठीक हो रही है। देखिए, कौल से फिर न जाइएगा । मुझे आपका बड़ा भरोसा है । देवो-देख ली औरत ? कैसी है ? मुन्नू–सरकार, जैसी तकदीर में है, वैसी है । घर की रोटियां तो मिलेंगी, नहीं तो अपने हाथों ठोकना पड़ता था। है क्या कि मिजाज को सीधो है। हमारे जात की औरतें बड़ी चञ्चल होती हैं, हजूर ! सैकड़े पीछे एक भी पाक न मिलेगी। श्याम o- श्याम०- 2 -