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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/११८

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११४ मानसरोवर देवी- मेहतर लोग अपनी औरतों को कुछ कहते नहीं ? सुन्नू - क्या कहे हजूर ! डरते हैं कि कहीं अपने आसना से चुगली खाकर हमारी नौकरी-चाकरी न छुड़ा दे । मेहतरानियों पर बावू साहबो की बहुत निगाह रहती है, सरकार। देवी-(हँसकर ) चल झूठे ! वावू साहबों की औरतें क्या मेहतरानियों से भी गई-गुज़री होती हैं! मुनू - अव सरकार कुछ न कहलायें । हजूर को छोड़कर और तो कोई ऐसी बवु- आइन नहीं देखता, जिसका कोई वखान करे । बहुत ही छोटा आदमी हूँ सरकार , पर इन ववुआइनों की तरह मेरी औरत होती, तो उससे बोलने को जी न चाहता। हजूर के चेहरे-मुहरे की कोई औरत मैंने तो नहीं देखी। देवी - चल झठे, इतनी खुशामद करना किससे सीखा ? मुन्न - खुसामद नहीं करता सरकार, सच्ची बात कहता हूँ । हजूर एक दिन खिड़की के सामने खड़ी थीं। रजा मियाँ की निगाह आप पर पड़ गई । जूते की बढ़ी दूकान है उनकी । अल्लाह ने जैसा धन दिया है, वैसा ही दिल भी। आपको देखते ही आँखें नीचे कर ली। आज वातों-बातों मे हजूर की सकल-सूरत को सराहने लगे। मैंने कहा- -जैसी सूरत है, वैसा सरकार को अल्लाह ने दिल भी दिया है। देवी-~अच्छा, वह लाँवा-सा साँवले रज का जवान ? मुन्नू-हाँ हजूर, वही । मुझसे कहने लगे कि किसी तरह एक बार फिर उन्हें देख पाता ; लेकिन मैंने डाँटकर कहा-खबरदार मियाँ, जो मुझसे ऐसी बातें कीं। वहाँ तुम्हारी दाल न गलेगी। देवी- तुमने बहुत अच्छा किया । निगोड़े की आंखें फूट जायँ , जव इधर से जाता है, खिड़की की ओर उसकी निगाह रहती है । कह देना-इधर भूलकर भी न ताके। मुन्नू-कह दिया है हजूर ! हुकुम हो तो चलूँ । और तो कुछ साफ नहीं करना है ? सरकार के आने की बेला हो गई, मुझे देखेंगे तो कहेंगे- यह क्या बातें कर . रहा है। देवी-ये रोटियाँ लेते जाओ । आज चूल्हे से बच जाओगे। मुन्नू- अल्लाह हजूर को सलामत रखे । मेरा तो यही जी चाहता है कि इसी