पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१७४

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मानसरोवर पर उसके पाँव पल भर भी नहीं रुके, हाँथों में ज़रा भी हिचक न हुई। हाथों का हिलना खेती का तबाह होना था। पयाग की ओर से अब कोई शका न थी। अगर भय था तो यही कि मईया का वह केंद्र-भाग, जहाँ लाठी का कुदा डालकर पयाग ने उसे उठाया था, न जल जाय, क्योंकि छेद के फैलते ही मड़े या उसके ऊपर आ गिरेगी और उसे अग्नि-समाधि में मग्न कर देगो । पयाग यह जानता था और हवा को चाल से उड़ा जाता था। चार फरलांग की दौड़ है। मृत्यु अग्नि का रूप धारण किये हुए पयाग के सिर पर खेल रही है और गाँव की फसल पर। उसकी दौड़ में इतना वेग है कि ज्वालाओं का मुंह पीछे को फिर गया है और उनको दाहक शक्ति का अधिकाश वायु से लड़ने में लग रहा है नहीं तो अब तक बीच में आग पहुँच गई होती और हाहाकार मच गया होता। एक फरलांग तो निकल गया, पयाग की हिम्मत ने हार नहीं मानी । वह दूसरा फरलांग भी पूरा हो गया। देखना पयाग, दो फरलांग की और कसर है । पाँव जरा भी सुस्त न हों। ज्वाला लाठी के कुन्दे पर पहुंची और तुम्हारे जीवन का अन्त है। मरने बाद भी तुम्हें गालियाँ मिलेंगी, तुम अनन्त काल तक आहों की आग में जलते रहोगे। वस, एक मिनट और ! अव केवल दो खेत और रह गये हैं। सर्वनाश ! लाठो का कुन्दा ऊपर निकल गया। मड़े या नीचे खिसक रही है-अब कोई आशा नहीं। पयाग प्राण छोड़कर दौड़ रहा है, वह किनारे का आ पहुँचा । अब केवल दो सेकेण्ड का और मामला है। विजय का द्वार सामने बीस हाथ पर खड़ा स्वागत कर रहा है। उधर स्वर्ग है, इधर नरक । मगर वह मडैया खिसकती हुई पयाग के सिर पर आ पहुँची। वह अब भी उसे फेंककर अपनी जान बचा सकता है। पर उसे प्राणों का मोह नहीं। वह उस जलती हुई आग को सिर पर लिये भागा जा रहा है। वह उसके पाँव लड़खड़ाये ! हाय ! अब यह क्रूर अग्नि-लीला नहीं देखी जाती । एकाएक एक स्त्री सामने के वृक्ष के नीचे से दौड़ती हुई पयाग के पास पहुंची। यह रुक्मिन थी। उसने तुरन्त पयाग के सामने आकर गरदन झुकाई और जलती हुई मडैया के नीचे पहुँचकर उसे दोनों हाथों पर ले लिया। उसी दम पयाग मूच्छित होकर गिर पड़ा । उसका सारा मुँह झुलस गया था । रुक्मिन उस अलाव को लिये हुए एक सेकेंड में खेत के डाँड़े पर आ पहुँची, मगर इतनी दूर में उसके हाथ जल गये, मुँह जल गया और कपड़ों में आग लग गई