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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१७५

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अग्नि-समाधि १७१ उसे अव इतनी सुधि भी न थी कि मडैया के बाहर निकल आये । वह मडैया को लिये हुए गिर पड़ी। इसके बाद कुछ देर तक मड़े या हिलती रही । रुक्मिन हाथ-पाँव फेंकती रही, फिर अग्नि ने उसे निगल लिया। रुक्मिन ने अग्नि-समाधि ले ली। कुछ देर के बाद पयाग को होश आया। सारी देह जल रही थी। उसने देखा, वृक्ष के नीचे फूस को लाल आग चमक रही है। उठकर दौड़ा और पैर से आग को हटा दिया-नीचे रुक्मिन की अधजली लाश पड़ी हुई थी। उसने बैठकर दोनो हाथों से मुँह ढाँप लिया और रोने लगा। प्रात काल गाँव के लोग पयाग को उठाकर उसके घर ले गये 2 एक सप्ताह तक उसका इलाज होता रहा, पर बचा नहीं । कुछ तो आग ने जलाया था। जो कसर थी वह शोकाग्नि ने पूरी कर दी।