सुजान भगत १७५ चिलम न भरने देते, यहाँ तक कि उसकी धोती छाँटने के लिए भी आग्रह करते थे। मगर अधिकार उसके हाथ में न था। वह अब घर का स्वामी नहीं, मन्दिर का देवता था। एक दिन बुलाको ओखली में दाल छाँट रही थी । एक भिखमगा द्वार पर आकर चिल्लाने लगा। बुलाकी ने सोचा, दाल छाँट लूँ, तो उसे कुछ दे दूँ । इतने में बड़ा लड़का भोला आकर बोला-अम्माँ, एक महात्मा द्वार पर खड़े गला फाड़ रहे हैं। कुछ दे दो। नहीं, उनका रोयाँ दुखी हो जायगा । वुलाकी ने उपेक्षा-भाव से कहा--भगत के पांव में क्या मेंहदी लगो है, क्यों कुछ ले जाकर नहीं दे देते ? क्या मेरे चार हाथ हैं ? किस-किसका रोयाँ सुखी करूँ, दिन-भर तो तांता लगा रहता है । भोला-चौपट करने पर लगे हुए हैं, और क्या । अभी महंगू वेग देने आया था। हिसाब से ७ मन हुए। तौला तो पौने सात मन ही निकले। मैने कहा-दस सेर और ला, तो आप बैठे-बैठे कहते है, अब इतनी दूर कहाँ लेने जायगा। भरपाई लिख दो, नहीं उसका रोयाँ दुखी होगा। मैंने भरपाई नहीं लिखी। दस सेर वाकी लिख दी। वुलाकी- बहुत अच्छा किया तुमने, बकने दिया करो, दस-पांच दफे मुंह की खायँगे, तो आप ही बोलना छोड़ देंगे। भोला-दिन-भर एक-न-एक खुचड़ निकालते रहते हैं। सौ दफे कह दिया कि तुम घर-गृहस्थी के मामले मे न बोला करो, पर इनसे विना वोले रहा ही नहीं जाता। वुलाको- मैं जानती कि इनका यह हाल होगा, तो गुरुमन न लेने देती। भोला-भगत क्या हुए कि दीन-दुनिया दोनो से गये। सारा दिन पूजा-पाठ मे ही उड़ जाता है । अभी ऐसे बूढ़े नहीं हो गये कि कोई काम ही न कर सकें। वुलाकी ने आपत्ति की- भोला, यह तो तुम्हारा कुन्याय है । फावड़ा-कुदाल अव उनसे नहीं हो सकता, लेकिन कुछ-न-कुछ तो करते ही रहते हैं । वैलो को सानी-पानी देते हैं, गाय दुहाते हैं और भी जो कुछ हो सकता है, करते है। भिक्षुक अभी तक खड़ा चिल्ला रहा था । सुजान ने जब घर में से किसी को कुछ लाते न देखा, तो उठकर अन्दर गया और कठोर स्वर से बोला-तुम लोगो को कुछ
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