पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१८१

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सुजान भगत १७७ घरवाले जो रूखा सूखा दे दें, वह खाकर पेट भर लिया करे ! ऐसे जीवन को धिक्कार है। सुजान ऐसे घर में नहीं रह सकता । सव्या हो गई थी। भोला का छोटा भाई शकर नारियल भरकर लाया । सुजान ने नारियल दीवार से टिकाकर रख दिया। धरे-धरे तवाकू जल गया। ज़रा देर मे भोला ने द्वार पर चारपाई डाल दी । सुजान पेड़ के नीचे से न उठा। कुछ देर और गुज़री । भोजन तैयार हुआ। भोला बुलाने आया। सुजान ने कहा- भूख नहीं है । वहुत मनावन करने पर भी न उठा । तव बुलाकी ने आकर कहा-साना खाने क्यों नही चलते 2 जी तो अच्छा है ? सुजान को सबसे अधिक क्रोध वुलाकी ही पर था। यह भी लड़कों के साथ है । यह बैठी देखती रही और भोला ने मेरे हाथ से अनाज छीन लिया। इसके मुंह से इतना भी न निकला कि ले जाते हैं, ले जाने दो। लड़कों को न मालूम हो कि मैने कितने श्रम से यह गृहस्थी जोड़ी है, पर यह तो जानती है। दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा। भादो की अँधेरी रातो में मडैया लगाये जुआर की रखवाली करता था, जेठ बैसाख की दोपहरी में भी दम न लेता था और अब मेरा घर पर इतना अविकार भी नहीं है कि भीख तक दे सकूँ । माना कि भीख इतनी नहीं दी जाती, लेकिन इनको तो चुप रहना चाहिए या चाहे मैं घर में आग ही क्यो न लगा देता । कानून से भी तो मेरा कुछ होता है। मैं अपना हिस्सा नहीं खाता, दूसरों को खिला देता हूँ , इसमे किसी के बाप का क्या सामा। अब इस वक्त मनाने आई है ! इसे मैंने फूल की छड़ी से भी नहीं छुआ, नहीं तो गाँव में ऐसी कौन औरत है, जिसने खसम की लाते न खाई हों, कभी कड़ी निगाह से देखा तक नहीं । रुपये-पैसे, लेना-देना सव इसी के हाथ मे दे रखा था । अव रुपये जमा कर लिये हैं, तो मुझो से घमड करती है। अब इसे बेटे प्यारे हैं, मैं तो निखटटू, लुटाऊ, घर-फूंकू, घोंघा हूँ। मेरी इसे क्या परवा। तब लड़के न थे, जब बीमार पड़ी थी और मैं गोद में उठाकर चैद के घर ले गया था। आज इसके बेटे हैं और यह उनकी मा है। मै तो बाहर का आदमी हूँ, मुझसे घर से मतलब ही क्या । बोला-मै अब खा-पीकर क्या करूँगा, हल जोतने से रहा, फावड़ा चलाने से रहा। मुझे खिलाकर दाने को क्यो खराव करोगी। रस दो, बेटे दूसरी बार खायेंगे। बुलाकी-~-तुम तो ज़रा ज़रा-सी बात पर तिनक जाते हो। सच कहा है, बुटापे १२