पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/१८२

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१७८ मानसरोवर , में आदमो की बुद्धि मारी जाती है । भोला ने इतना हो तो कहा था कि इतनी भीख मत ले जाओ, या और कुछ ? सुजान~हाँ, बेचारा इतना ही कहकर रह गया। तुम्हें तो मज़ा आता जब वह ऊपर से दो-चार डंडे लगा देता । क्यों ? अगर यही अभिलाषा है, तो पूरी कर लो। भोला खा चुका होगा, बुला लाओ। नहीं भोला को क्यों बुलाती हो, तुम्हीं न जमा दो दो चार हाथ । इतनी कसर है, वह भी पूरी हो जाय । वुलाकी-हाँ, और क्या, यहो तो नारी का धरम ही है । अपने भाग सराहो कि मुझ जैसी सीधी औरत पा ली । जिस वल चाहते हो, बिठाते हो। ऐसी मुंहजोर होती, तो तुम्हारे घर में एक दिन निवाह न होता। सुजान-हाँ, भाई, वह तो मै ही कह रहा हूँ कि तुम देवी थीं और हो। मैं तव भी राक्षस था और अब तो दैत्य हो गया हूँ। बेटे कमाऊ हैं, उनकी-सी न कहोगी, तो क्या मेरी-सी कहोगी, मुझसे अब क्या लेना-देना है। वुलाकी ~ तुम झगड़ा करने पर तुले बैठे हो और मैं झगड़ा वचाती हूँ कि' चार आदमी हँसेंगे । चलकर खाना खा लो सीधे से, नहीं तो मैं भी जाकर सो रहूँगी। सुजान ---तुम भूखी क्यों सो रहोगी, तुम्हारे बेटों की तो कमाई है, हाँ, मैं बाहरी आदमी हूँ। बुलाकी-बेटे तुम्हारे भी तो हैं। सुजान-नहीं, में ऐसे बेटों से बाज़ आया। किसी और के वेटे होंगे। मेरे बेटे होते, तो क्या मेरी यह दुर्गति होती ! बुलाकी-गालियां दोगे, तो मैं भी कुछ कह वैलूंगी। सुनती थी, मर्दबड़े समझ- दार होते हैं, पर तुम सबसे न्यारे हो। आदमी को चाहिए कि जैसा समय देखे, वैसा काम करे । अव हमारा और तुम्हारा निबाह इसी में है कि नाम के मालिक बने रहें, और वही करें, जो लड़कों को अच्छा लगे। मैं यह बात समझ गई, तुम क्यों नहीं समझ पाते। जो कमाता है, उसी का घर में राज होता है, यही दुनिया का दस्तूर है। मैं बिना लड़कों से पूछे कोई काम नहीं करती, तुम क्यों अपने मन की करते हो। इतने दिनों तो राज कर लिया, अव क्यों इस साया मे पडे हो। आधी रोटी खाओ, भगवान् का भजन करो और पड़े रहो। चलो, खाना खा लो।