पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२११

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सोहाग का शव 7 था, आने में विलय होने लगा, उसके मन में एक तरग-सी उठने लगी कि जाकर केशव को फटकारे, उसका सारा नशा उतार दे, कहे-तुम इतने भयकर हिसक हो, इतने महान् धूर्त हो, यह मुझे मालूम न था। तुम यही विद्या सीखने यहाँ आये थे ! तुम्हारे सारे पाण्डित्य का यही फल है ! तुम एक अबला को, जिसने तुम्हारे ऊपर अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया, यों छल सकते हो। तुममे क्या मनुष्यता नाम को भी नहीं रह गई ? आखिर तुमने मेरे लिए क्या सोचा है ? मैं सारी जिदगी तुम्हारे नाम को रोती रहूँ ! लेकिन अभिमान हर बार उसके पैरों को रोक लेता। नहीं, जिसने उसके साथ ऐसा कपट किया है, उसका इतना अपमान किया है, उसके पास वह न जायगी । वह उसे देखकर अपने आँसुओं को रोक सकेगी या नहीं, इसमें उसे सदेह और केशव के सामने वह रोना नहीं चाहती थी। अगर केशव उससे घृणा करता है, तो वह भी केशव से घृणा करेगी । सध्या भी हो गई, पर युवती न आई। बत्तियाँ भी जली , पर उसका पता नहीं। एकाएक उसे अपने कमरे के द्वार पर किसी के आने की आहट मालूम हुई । वह कूदकर बाहर निकल आई। युवती कपड़ों का एक पुलिंदा लिये सामने खड़ी थी। सुभद्रा को देखते ही बोली-क्षमा करना, मुझे आने में देर हो गई। बात यह है कि केशव को किसी बड़े जरूरी काम से जर्मनी जाना है। वहाँ उन्हें एक महीने से ज्यादा लग जायगा । वह चाहते हैं कि मैं भी उनके साथ चलू । मुझसे उन्हें अपना थोसिस लिखने में बड़ी सहायता मिलेगी। बर्लिन के पुस्तकालयों को छानना पड़ेगा। मैंने भी इसे स्वीकार कर लिया है। केशव की इच्छा है कि जर्मनी जाने के पहले हमारा विवाह हो जाय । कल सध्या समय सस्कार हो जायगा। अव ये कपड़े मुझे आप जर्मनी से लौटने पर दीजिएगा। विवाह के अवसर पर हम मामूली कपड़े पहन लेंगे। और करती क्या। इसके सिवा कोई उपाय न था। केशव का जर्मनी जाना अनिवार्य है।' सुभद्रा ने कपड़ो को मेज़ पर रखकर कहा - आपको धोखा दिया गया है। युक्तो ने घबड़ाकर पूछा-चोखा ! कैसा धोखा ! मैं बिलकुल नहीं समझो । तुम्हारा मतलब क्या है ?" सुभद्रा ने सकोच के आवरण को हटाने की चेष्टा करते हुए कहा- केशव तुम्हें धोखा देकर तुमसे विवाह करना चाहता है।