सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२१० मानसरोवर . - खून का प्यासा न हो जाता 2 क्या पुरुष हो जाने से ही सभी बातें क्षम्य और स्त्री हो जाने से सभी बातें अक्षम्य हो जाती हैं ? नहीं, इस निर्णय को सुभद्रा की विद्रोही आत्मा इस समय स्वीकार नहीं कर सकती। उसे नारियों के ऊँचे आदर्शों की परवा नहीं है। उन स्त्रियों में आत्माभिमान न होगा। वे पुरुप के पैरों की जूतियां बनकर रहने हो मे अपना सौभाग्य समझती होगी। सुभद्रा इतनी आत्माभिमान-शून्य नहीं है । वह अपने जीते-जी यह नहीं देख सकती कि उसका पति उसके जीवन का सर्व- नाश करके चैन को वशी बजाये । दुनिया उसे हत्यारिनी, पिशाचिनो कहेगी, कहे- उसको परवा नहीं। रह-रहकर उसके मन मे भयकर प्रेरणा होती थी कि इसी समय उसके पास चली जाय, और इसके पहले कि वह उस युवती के प्रेम का आनद उठाये, उसके जीवन का अन्त कर दे । वह केशव की निष्ठुरता को याद करके अपने मन को उत्तेजित करती थी। अपने को धिकार-धिकारकर नारी-सुलभ शकाओं को दूर करती थी । क्या वह इतनी दुर्बल है ? क्या उसमें इतना साहस भी नहीं है ? इसी वक्त यदि कोई दुष्ट उसके कमरे में घुस आये और उसके सत्य का अपहरण करना चाहे, तो क्या यह उसका प्रतीकार न करेगो ? आखिर आत्म-रक्षा ही के लिए तो उसने यह पिस्तौल ले रखी है। केशव ने उसके सत्य का अपहरण ही तो किया है। उसका प्रेम-दर्शन केवल प्रवचना थी। वह केवल अपनी वासनाओं की तृप्ति के लिए सुभद्रा के साथ प्रेम-स्वांग भरता था। फिर उसका वध करना क्या सुभद्रा का कर्त्तव्य नहीं ? इस अंतिम कल्पना- से सुभद्रा को वह उत्तेजना मिल गई, जो उसके भयकर सकल्प को पूरा करने के लिए आवश्यक थी। यही वह अवस्था है, जब स्त्री पुरुष के खून की प्यासी हो जाती है। उसने खूटी पर लटकती हुई पिस्तौल उतार लो और ध्यान से देखने लगी, मानो उसे कभी देखा न हो। कल सध्या समयःजव आर्य-मदिर मे केशव और उसकी प्रेमिका एक दूसरे के सम्मुख बैठे होंगे, उसी समय वह इस गोली से केशव की प्रेम-लीलाओं का अत कर देगी। दूसरी गोली अपनी छाती में मार लेगी। क्या वह रो-रोकर अपना अवम जीवन काटेगी ? (७) सध्या का समय था । आर्य-मन्दिर के आँगन में वर और वधू इष्ट-मित्रों के साथ बैठे हुए थे । विवाह का सस्कार हो रहा था। उसी समय सुभद्रा पहुँची और वरामदे ,