पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२१९

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सोहाग का शव २१५ उसने खूब सोच लिया था, उसके आक्षेपों का उत्तर सोच लिया था, पत्र के शब्द तक मन में अङ्कित कर लिये थे। यह सारी तैयारियां धरी रह गई और सुभद्रा से साक्षात् हो गया। सुभद्रा उसे देखकर ज़रा भी नहीं चोंकी, उसके मुख पर आश्चर्य, घबराहट या दुःख का एक चिह भो न दिखाई दिया। उसने उसी भांति उससे बात की, मानो वह कोई अजनवी हो। यह यहाँ कत्र आई, कैसे आई, क्यों आई, गुज़र करतो है यह और इसी तरह के असख्य प्रश्न पूछने के लिए केशव का चित्त चचल हो उठा। उसने सोचा था, सुभद्रा उसे विकारेगी, विष खाने की धमकी देगी-निष्ठुर, निर्दयी और न जाने क्या-क्या कहेगी। इन सब आपदाओं के लिए वह तैयार था, पर इस आकस्मिक मिलन, इस गर्वयुक्त उपेक्षा के लिए वह तैयार न था। वह प्रेम-व्रतधारिणी सुभद्रा इतनी कठोर, इतनी हृदय-शून्य हो गई है। अवश्य ही इसे सारी बातें पहले हो मालूम हो चुकी हैं। सबसे तीव्र आघात यह था कि इसने अपने सारे आभूषण इतनी उदारता से दे डाले और, कौन जाने वापस भी न लेना चाहती हो। वह परास्त और अप्रतिभ होकर एक कुर्सी पर बैठ गया। उत्तर में एक शब्द भो उसके मुख से न निकला। युवती ने कृतज्ञता का भाव प्रकट करके कहा-'इनके पति इस समय जर्मनी केशव ने आँखें फाड़कर देखा, पर कुछ बोल न सका। युवती ने फिर कहा-"बेचारी सगीत के पाठ पढ़ाकर और कुछ कपड़े सीकर अपना निर्वाह करती है। वह महाशय यहाँ आ जाते, तो उन्हें उनके सौभाग्य पर बधाई देती।" केशव इस पर भी कुछ न बोल सका, पर सुभद्रा ने मुसकिराकर कहा-वह मुझमे रूठे हुए हैं, बधाई पाकर और भी झल्लाते।” युवती ने आश्चर्य से कहा- "तुम उन्हीं के प्रेम से यहाँ आई , अपना घर-बार छोड़ा, यहाँ मिहनत-मजदूरी करके निर्वाह कर रही हो, फिर भी वह तुमसे रूठे हुए हैं ? आश्चर्य !" सुभद्रा ने उसी भांति प्रसन्न-मुख से कहा-"पुरुष-प्रकृति ही आश्चर्य का विषय है, चाहे मि० केशव इसे स्वीकार न करें।" युवती ने फिर केशव को ओर प्रेरणा-पूर्ण दृष्टि से देखा, लेकिन केशव उसी भांति अप्रतिभ बैठा रहा। उसके हृदय पर यह नया आघात था। युवती ने उसे चुप देख-