पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

, सोना ने अपराध स्वीकार करते हुए कहा- हाँ, भूल तो हुई , पर सब-के-सब इतना कोलाहल मचाये हुए थे कि सुना नहीं जाता था-1 मोटे-रोते हो थे न, रोने देती । रोने से उनका पेट न भरता , बल्कि और भूख खुल जाती। सहसा एक आदमी ने बाहर से आवाज़ दी-पण्डितजी, महारानी बुला रहो हैं, और लोगों को लेकर जल्दी चलो । पण्डितजी ने पत्नी की ओर गर्व से देखकर कहा-देखा, इसे निमन्त्रण कहते हैं । अब तैयारी करनी चाहिए। वाहर आकर पण्डितजी ने उस आदमी से कहा--तुम एक क्षण और न आते, तो मैं कथा सुनाने चला गया होता। मुझे बिलकुल याद न थी। चलो, हम बहुत शीघ्र आते हैं। नौ बजते-बजते पण्डित मोटेराम बाल-गोपाल सहित रानी साहब के द्वार पर जा पहुँचे । रानी बड़ी विशालकाय तेजस्विनी महिला थीं। इस समय वे कारचोबीदार तकिया लगाये तत्त पर बैठी हुई थीं। दो आदमी हाथ बांधे पीछे खड़े थे। बिजली का पखा चल रहा था। पण्डितजी को देखते ही रानी ने तात से उठकर चरण- स्पर्श किया, और इस बालक-मण्डली को देखकर मुसकराती हुई बोली - इन बच्चों को आप कहाँ से पकड़ लाये ? मोटे०--करता क्या, सारा नगर छान मारा , पर किसी पण्डित ने आना स्वीकार न किया। कोई किसी के यहाँ निमन्त्रित है, कोई किसी के यहाँ । तव तो मैं बहुत चकराया। अन्त में मैंने उनसे कहा--अच्छा, आप नहीं चलते तो हरि-इच्छा लेकिन ऐसा कीजिए कि मुझे लजित न होना पड़े। तव जबरदस्ती प्रत्येक के घर से जो चालक मिला, उसे पकड़ लाना पड़ा। क्यो फेकूराम, तुम्हारे पिताजी का क्या नाम है ? फेकूराम ने गर्व से कहा-पण्डित सेतूराम पाठक । रानी-बालक तो बड़ा होनहार है। और वालकों को भी उत्कठा हो रही थी कि हमारी परीक्षा भी ली जाय; लेकिन जब पण्डितजी ने उनसे कोई प्रश्न न किया, उधर रानी ने फेकूराम की प्रशसा कर दी, तव तो वे अधीर हो उठे। भवानी चोला --मेरे पिता का नाम है पण्डित गंग पांदे। >