ईश्वरीय न्याय २४१ , भानुकुंवरि फिर पर्दे से निकल आई और विस्मित होकर बोली-~-क्या हमारा पक्ष निर्वल है ' दुनिया जानतो है कि गांव हमारा है । उसे हमसे कौन ले सकता है ? नहीं, में सुलह कभी न करूँगो, पाप कागजों को देखें। मेरे बच्चों की खातिर यह कष्ट उठायें। आपका परिश्रम निष्फल न जायगा। सत्यनारायण की नीयत पहले खराव न थी। टेखिए, जिस मिती में गांव लिया गया है, उस मिती में ३० हजार का क्या खर्च दिखाया गया है। अगर उसने अपने नाम उधार लिखा हो, तो देखिए, वार्षिक मूद चुकाया गया या नहीं। ऐसे नर-पिशाच से मैं कभी सुलह न करूँगो । सेठजो ने समझ लिया कि इस समय समझाने-बुझाने से कुछ काम न चलेगा। कागजात देखे, अभियोग चलाने की तैयारियां होने लगी। (४) मु शो सत्यनारायणलाल खिसियाये हुए मकान पहुँचे। लड़के ने मिठाई मांगी। से पीटा। स्त्री पर इसलिए वरस पड़े कि उसने क्यों लड़के को उनके पास जाने दिया। अग्नी वृद्धा माता को डांटकर कहा-तुमसे इतना भी नहीं हो सकता कि जरा लड़के को बहलाओ। एक तो में दिन-भर का थका-मादा घर आऊँ और फिर लड़के को ग्लाऊँ ? मुझे दुनिया में न और कोई काम है, न धन्धा । इस तरह घर में वावैला मचाकर बाहर आये, सोचने लगे-मुझसे बड़ी भूल हुई ! मैं कैसा मूर्ख है ? और रतने दिन तक सारे कागज-पत्र अपने हाथ में थे। जो चाहता, कर सकता था . हाय-पर-हाथ धरे बैठा रहा। आज सिर पर आ पड़ी तो सूमो । मैं चाहता तो वही- साने सब नये बना सकता था, जिसमे इस गाँव का और रुपये का ज़िक ही न होता; पर मेरी मूर्खता के कारण घर में आई हुई लक्ष्मी ली जाती है । मुझे क्या मालूम या कि वह जुडैल मुझसे इस तरह पेश आयेगी, कागजों में हाथ तक न लगाने देगी। इसी उधेड्युन में मुशोजी एकाएक उछल पड़े। एक उपाय सूझ गया क्यों न कार्यकर्ताओं को मिला लूँ ? यद्यपि मेरो सख्ती के कारण वे सब मुझसे नाराज थे ओर इस समय सोधे यात भी न करेंगे, तथापि उनमे ऐसा कोई भी नहीं जो प्रलोभन से मुट्ठी में न आ जाय । हो, इसमें रुपया पानी को तरह वहाना पड़ेगा, पर इतना रुपया मारोगा कहां से ? हाय दुर्भाग्य ! दो चार दिन पहले चेत गया होता, तो कोई कठिन नाई न पड़तो । क्या जानता था कि वह टाइन इस तरह वज्र-प्रहार करेगी। बस, अब पर
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