I २४२ मानसरोवर , - एक ही उपाय है । किसी तरह कागज़ात गुम कर दूं । बड़ी जोखिम का काम है । पर करना ही पड़ेगा। दुष्कामनाओं के सामने एक वार सिर झुकाने पर, फिर सँभलना कठिन हो जाता है। पाप के अथाह दलदल में जहाँ एक वार पड़े कि फिर प्रतिक्षण नीचे ही चले जाते हैं । मुशी सत्यनारायण सा विचारशील मनुष्य इस समय इस फिक्र में था कि कैसे सेंध लगा पाऊँ। मु शीजी ने सोचा-क्या सेंव लगाना आसान है ? इसके वास्ते कितनी चतुरता, कितना साहस, कितनी बुद्धि, कितनी वीरता चाहिए | कौन कहता है कि चोरी करना आसान काम है ? मैं जो कहीं पकडा गया तो मरने के सिवा और कोई मार्ग ही न रहेगा। बहुत सोचने-विचारने पर भी मु शोजी को अपने ऊपर ऐसा दुस्साहस कर सकने का विश्वास न हो सका । हां, इससे सुगम एक दूसरी तदवीर नज़र आई -क्यों न दफ्तर में आग लगा दूँ । एक बोतल मिट्टी का तेल और एक दियासलाई की जरूरत है। किसी वदमाश को मिला लूं , मगर यह क्या मालूम कि वह वही कमरे मे रखी , है या नहीं । चुडैल ने उसे ज़रूर अपने पास रख लिया होगा । नहीं, आग लगाना गुनाह बेलज्जत होगा। बहुत देर तक मु शोजी करवटें बदलते रहे। नये नये मनसूबे सोचते , पर फिर अपने ही तर्कों से काट देते । वर्षाकाल में बादलों की नयी-नयी सूरतें बनतीं और फिर हवा के वेग से विगड़ जाती हैं। वही दशा इस समम उनके मनसूबों की हो रही थी। पर इस मानसिक अशान्ति में भी एक विचार पूर्ण रूप से स्थिर था-किसी तरह इन काराज़ात को अपने हाथ मे लाना चाहिए। काम कठिन है-माना [ पर हिम्मत म थी, तो रार क्यों मोल ली ? क्या ३० हजार को जायदाद दाल-भात का कौर है।चाहे जिस तरह हो, चोर बने विना काम नहीं चल सकता। आखिर जो लोग चोरियां करते हैं, वे भी तो मनुष्य ही होते हैं । बस, एक छलांग का काम है । अगर पार हो गये, तो राज करेंगे, गिर पड़े तो जान से हाथ वोयेंगे। (५) रात के दस बज गये । मु शो सत्यनारायण कुन्जियों का एक गुच्छा कमर में दवाये घर से बाहर निकले । द्वार पर थोड़ा-सा पुआल रखा हुआ था । उसे देखते ही वे चौंक
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