ईश्वरीय न्याय २५० (७) सत्यनारायण को अब अपनी जीत में कोई सन्देह न था। वादी पक्ष के गवाह भो उखड़ गये थे और बहस भी सवृत से खाली थी । अव इनकी गिनती भी जमींदागे मे होगी और सम्भव है, वह कुछ दिनों मे रईस कहलाने लगें । पर किसी-न-किसी कारण से अब वह शहर के गण्य मान्य पुरुपों से आँखें मिलाते शरमाते थे। उन्हें देखते ही उनका सिर नीचा हो जाता था। वह मन में डरते थे कि वे लोग कहीं इस विषय पर कुछ पूछ-ताछ न कर बैठे। वह वाज़ार में निकलते तो दुकानदारों में कुछ कानाफूसी होने लगती और ल ग उन्हें तिरछी दृष्टि से देखने लगते । अव तक लोग उन्हें विवेक- शील और सच्चरित्र मनुष्य समझते थे, शहर के धनी-मानी उन्हें इज्जत की निगाह से देखते ओर उनका वढा आदर करते थे। यदापि मु शीजी को अब तक किसी से टेढी- तिरछी सुनने का सयोग न पढ़ा था, तथापि उनका मन कहता था कि सच्ची बात किसी से छिपी नहीं है। चाहे अदालत से उनकी जीत हो जाय, पर उनकी साख अब जाती रही । अब उन्हे लोग स्वार्थी, कपटी और दगाबाज समझेगे। दूसरों की बात तो अलग रही, स्वय उनके घरवाले उनकी उपेक्षा करते थे। बूढी माता ने तीन दिन से मुंह में पानी नहीं डाला था। स्त्री वार-दार हाथ जोड़कर कहती थी कि अपने प्यारे बालको पर दया करो। तुरे काम का फल कभी अच्छा नहीं होता! नहीं तो पहले मुझी को विष खिला दो। जिस दिन फैसला सुनाया जानेवाला था, प्रातःकाल एक कुंजदिन तरकारियाँ लेकर आई और मुशियाइन से बोली- बहूजी ! हमने बाज़ार में एक बात सुनो है । बुरा न मानो तो कहूँ ? जिसको देखो, उसके मुँह से यही बात निकलती है कि लाला बाबू ने जालसाजी से पण्डिताइन का कोई इलाका ले लिया । हमें तो इस पर यकीन नहीं आता। लाला बाबू ने न संभाला होता, तो अब तक पण्डिताइन का कहीं पता न लगता ! एक अगुल जमीन न बचती। इन्हीं ऐसा सरदार था कि सवको सँभाल लिया। तो क्या अब उन्हींके साथ वदी करेंगे ? अरे बह ! कोई कुछ साथ लाया है कि ले जायगा ! यही नेकी-वदी रह जाती है। बुरे का फल बुरा होता है । आदमी न देखे, पर अल्लाह सब कुछ देखता है। बहजो पर धड़ों पानी पड़ गया । जी चाहता था कि धरती फट जाती, तो उसमें समा जातो। स्त्रियां स्वभावत लज्जावती होती हैं। उनमें आत्माभिमान को मात्रा अधिक
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२५५
दिखावट