पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२५६

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२५२ मानसरोवर होती है । निन्दा-अपमान उनसे सहन नहीं हो सकता । सिर झुकाये हुए बोली वूआ! मै इन बातों को क्या जानूँ ? मैंने तो आज ही तुम्हारे मुंह से सुनी है। कौन-सी तर- कारियाँ हैं ? मु शी सत्यनारायण अपने कमरे में लेटे हुए कुंजड़िन की बातें सुन रहे थे उसके चले जाने के बाद आकर स्त्री से पूछने लगे यह शैतान की खाला क्या कह रही थी ? स्त्री ने पति की ओर से मुंह फेर लिया और जमीन की ओर ताकते हुए बोली- क्या तुमने नहीं सुना ? तुम्हारा गुन-गान कर रही थी। तुम्हारे पीछे देखो किस-किसके मुँह से ये बातें सुननी पड़ती हैं और किस किससे मुंह छिपाना पड़ता है। मुशीजी अपने कमरे में लौट आये, स्त्री को कुछ उत्तर नहीं दिया। उनकी आत्मा लज्जा से परास्त हो गई। जो मनुष्य सदैव सर्व-सम्मानित रहा हो, जो सदा आत्माभि- मान से सिर उठाकर चलता रहा हो, जिसको सुकृति की सारे शहर में चर्चा होती रही हो, वह कभी सर्वया लजाशून्य नहीं हो सकता, लज्जा कुपथ को सबसे बड़ी शत्रु है, कुवासनाओं के भ्रम में पढ़कर मु शोजी ने समझा था, मैं इस काम को ऐसी गुप्त रीति से पूरा कर ले जाऊँगा कि किसीको कानों-कान खबर न होगी, पर उनका यह मनोरथ सिद्ध न हुआ। बाबाएँ आ खड़ी हुई । उनके हटाने में उन्हें बड़े दुस्साहस से काम लेना पड़ा, पर यह भी उन्होंने लना से-बचने के निमित्त किया। जिसमें यह कोई न कहे कि अपनो स्वामिनी को धोखा दिया। इतना यत्न करने पर भी वह निन्दा से न बच सके । बाजार को सौदा वेचनेवालियाँ भी अब उनका अपमान करती है । कुवासनाओं से दवी हुई लज्जा-शक्ति इस कड़ी चोट को सहन न कर सको । मुंशीजी सोचने लगे, अब मुझे धन-सम्पत्ति मिल जायगी, ऐश्वर्यवान् हो जाऊँगा, परन्तु निन्दा से मेग पीछा न छूटेगा । अदालत का फैसला मुझे लोक-निन्दा से न बचा सकेगा। ऐश्वर्य का फल क्या है ? मान और मर्यादा । उससे हाथ धो बैठा, तो इस ऐश्वर्य को लेकर क्या करूँगा ? चित्त की शक्ति खोकर, लोक-लजा सहकर, जन-समुदाय में नीच वनकर और अपने घर में कलह का बोज बोकर यह सम्पत्ति मेरे किस काम आयेगो ? और यदि वास्तव में कोई न्याय- शक्ति हो और वह मुझे इस कुकृत्य का दण्ड दे, तो मेरे लिए सिवा मुंह में कालिख लगा- कर निकल जाने के और कोई मार्ग न रहेगा । सत्यवादो मनुष्य पर कोई विपत्ति पड़ती है, तो लोग उसके साथ सहानुभूति करते हैं । दुष्टों को विपत्ति लोगों के लिए व्यग्य को सामग्री बन जातो है, उस अवस्था में ईश्वर अन्यायो ठहराया जाता है ; मगर दुटों की