२६२ मानसरोवर T जिसको श्रीमान् वायसराय के दरबार में कुर्सी पर बैठने का अधिकार प्राप्त है और आप सब महाशय उसे जानते हैं। उपस्थित जनों ने तालियां बजाई । सेठ गिरधारीलाल के महल्ले में उनके एक प्रतिवादी थे। नाम था मुशी फैजुल रहमान खाँ । बड़े जमींदार और प्रसिद्ध वकील थे। बाबू रामरक्षा ने अपनी दृढता, साहस, बुद्धिमत्ता और मृदु भाषण से मुंशीजी साहब की सेवा करनी आरम्भ की। सेठजी को परास्त करने का यह अपूर्व अवसर हाथ आया। वे रात और दिन इसी धुन में लगे रहते। उनकी मीठी और रोचक बातों का प्रभाव उपस्थित जनों पर बहुत ही अच्छा पड़ता। एक बार आपने असाधारण श्रद्धा-उमंग में आकर कहा -मैं डके की चोट कहता हूँ कि मुशी फैजुलरहमान से- अधिक योग्य आदमी आपको दिल्ली में न मिल सकेगा । यह वह आदमी है, जिसकी ग़ज़लों पर कविजनों में वाह-वाह मच जाती है। ऐसे श्रेष्ठ आदमी की सहायता करना में अपना जातीय और सामाजिक धर्म समझता हूँ। अत्यन्त शोक का विषय है, कि बहुत से लोग इस जातीय और पवित्र काम को व्यक्तिगत लाभ का साधन बनाते हैं। धन और वस्तु है, श्रीमान् वायसराय के दरबार में प्रतिष्ठित होना और वस्तु, किन्तु सामाजिक सेवा, जातीय चाकरी और ही चीज़ है । वह मनुष्य जिसका जीवन ब्याज-प्राप्ति, बेईमानी, कठोरता तथा निर्द- यता और सुख-विलास में व्यतीत होता हो, वह इस सेवा के योग्य कदापि नहीं है। (५) सेठ गिरधारीलाल इस अन्योक्ति-पूर्ण भाषण का हाल सुनकर क्रोध से आग हो गये। मैं बेईमान हूँ ! व्याज का धन खानेवाला हूँ ! विषयी हूँ! कुशल हुई, जो तुमने मेरा नाम नहीं लिया; किन्तु अब भी तुम मेरे हाथ में हो, मैं अब भी तुम्हें जिस तरह चाहूँ, नचा सकता हू । खुशामदियों ने आग पर तेल डाला । इधर रामरक्षा अपने काम मे तत्पर रहे । यहाँ तक कि 'वोटिंग-डे' आ पहुँचा। मिस्टर रामरक्षा को उद्योग में वहुत कुछ सफलता प्राप्त हुई थी। आज वे बहुत प्रसन्न थे। आज गिरधारीलाल को नीचा दिखाऊँगा। आज उसको जान पड़ेगा कि धन ससार के सब पदार्थों को इकट्ठा नहीं कर सकता। जिस समय फैजुलरहमान के वोट अधिक निकलेंगे और मैं तालियां बजाऊँगा, उस समय गिरधारीलाल का चेहरा देखने योग्य होगा । मुंह का रङ्ग बदल जायगा, हवाइयाँ उड़ने लगेगी, आँखें न मिला सकेगा। शायद फिर मुझे मुंह न दिखा सके। इन्हीं
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