पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२७४

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सन्ध्या का समय था। डाक्टर चड्ढा गोल्फ खेलने को तैयार हो रहे थे। मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिये आते दिखाई दिये। डोलो के पीछे एक बूढा लाठी टेकता चला आता था। डोली औषधालय के सामने आकर रुक गई। बूढे ने धीरे-धीरे आकर द्वार पर पड़ी हुई चिक से झांका। ऐसी साफ-सुथरी जमीन पर पैर रखते हुए भय हो रहा था कि कोई घुड़क न बैठे। डाक्टर साहव को मेज़ के सामने खड़े देखकर भी उसे कुछ कहने का साहस न हुआ। डाक्टर साहब ने विके के अन्दर के गरजकर कहा - कौन है ? क्या चाहता है ? बूढे ने हाथ जोड़कर कहा-हजूर, बड़ा गरीब आदमी हूँ। मेरा लड़का कई दिन से डाक्टर साहब ने सिगार जलाकर कहा-कल सबेरे आओ, कल सबेरे , हम इस वक्त मरीजों को नहीं देखते । बूढे ने घुटने टेककर जमीन पर सिर रख दिया और बोला-दुहाई है सरकार की, लड़का मर जायगा । हजूर, चार दिन से आँखें नहीं डाक्टर चड्ढा ने कलाई पर नज़र डाली। केवल १० मिनट समय और वाकी था। गोल्फ-स्टिक खूटी से उतारते हुए बोले-कल सबेरे आओ, कल सबेरे , यह हमारे खेलने का समय है। बूढ़े ने पगड़ी उतारकर चौखट पर रख दी और रोकर बोला-हजूर, एक निगाह देख लें। बस, एक निगाह ! लड़का हाथ से चला जायगा हजूर, सात लड़कों में यही एक बच रहा है हजूर, हम दोनों आदमी रो-रोकर मर जायगे सरकार ! आपकी बढ़ती होय, दीनबन्धु । 1