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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२७५

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मन्त्र २७१ ऐसे उजउ देहाती यहाँ प्राय रोज हो आया करते थे। डाक्टर साहब उनके स्वभाव से खूब परिचित थे। कोई कितना ही कुछ कहे ; पर वे अपनी ही रट लगाते जायेंगे। किसीकी सुनेंगे नहीं । धीरे से चिफ उठाई और बाहर निकलकर मोटर को तरफ चले। बूढा यह कहता हुआ उनके पीछे दौड़ा-सरकार, बड़ा चरम होगा, हजूर, दया कीजिए, बढ़ा दोन-दु सी हूँ, ससार में कोई और नहीं है, वावूजी ! मगर डाक्टर साहब ने उमकी ओर मुंह फेरकर देखा तक नहीं । मोटर पर बैठ- कर बोले-कल सवेरे आना। मोटर चली गई। बूढ़ा कई मिनट तक सूर्ति की भाँति निश्चल खड़ा रहा । ससार में ऐसे मनुष्य भी होते हैं, जो अपने आमोद-प्रमोद के आगे किसीकी जान की भी परवा नहीं करते, शायद इसका उसे अब भी विश्वास न आता था। सभ्य- ससार इतना निर्मम, इतना कठोर है, इसका ऐसा मर्मभेदी अनुभव अब तक न हुआ था। वह उन पुराने जमाने के जीवों मे था, जो लगी हुई आग को बुझाने, मुर्दे को कन्धा देने, किसीके छप्पर को उठाने और किसी कलह को शान्त करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। जब तक बूढे को मोटर दिखाई दी, वह खड़ा टक्टकी लगाये उम और ताकता रहा। शायद उसे अब भी डाक्टर साहब के लौट आने की आशा थी। फिर उसने कहारों से डोली उठाने को कहा । डोली जिधर से आई थी, उधर हो चली गई। चारों ओर से निराश होकर वह डाक्टर चड्ढा के पास आया था। इनकी बड़ी तारीफ सुनी थी। यहां से निराश होकर फिर वह किसी दूसरे डाक्टर के पास न गया । किस्मत ठोक ली। उसी रात को उसका हसता-खेलता सात साल का चालक अपनी वाल लोला समाप्त करके इस ससार से सिधार गया । बूढे मां-बाप के जीवन का यही एक आधार था। इसीका मुंह देखकर जोते थे। इस दोपक के वुझते ही जीवन की अँधेरी रात भांय-भाय करने लगी । बुढापे को विशाल ममता टूटे हुए हृदय से निकलकर उस अन्धकार मे आत-स्वर से रोने लगी। (२) कई साल गुजर गये। डाक्टर चड्दा ने खूब यश और धन कमाया , लेकिन इसके साथ ही अपने स्वास्थ्य की रक्षा भो की, जो एक असाधारण चात थी। यह उनके नियमित जीवन का आशीर्वाद था कि ५० वर्ष की अवस्था में उनकी चुस्ती