पृष्ठ:मानसरोवर भाग 5.djvu/२७६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७२ मानसरोवर और फुती युवकों को भी लज्जित करती थी। उनके हरएक काम का समय नियत था, इस नियम से वह जौ-भर भो न टलते थे । बहुधा लोग स्वास्थ्य के नियमों का पालन उस समय करते हैं, जब रोगी हो जाते हैं। डाक्टर चड्ढा उपचार और सयम का रहस्य खूब समझते थे। उनकी सतान-सख्या भी इसी नियम के अधीन थी। उनके केवल दो बच्चे हुए, एक लड़का और एक लड़की । तीसरी सन्तान न हुई , इसलिए श्रीमती चड्डा भी अभी जवान मालूम होतो थीं। लड़को का तो विवाह हो चुका था। लड़का कालेज में पढ़ता था । वही माता-पिता के जीवन का आधार था। शोल और विनय का पुतला, चड़ा हो रसिक, बड़ा ही उदार, विद्यालय का गौरव, युवक- समाज की शोभा। मुख मण्डल से तेज की छटा-सी निकलती थी। आज उसोको बीसवीं सालगिरह थी। सन्ध्या का समय था। हरी-हरी घास पर कुरसियाँ बिछी हुई थीं। शहर के रईस और हुक्काम एक तरफ, कालेज के छात्र दूसरी तरफ, बैठे भोजन कर रहे थे। विजली के प्रकाश से सारा मैदान जगमगा रहा था। आमोद-प्रमोद का सामान भी जमा था। छोटा-सा प्रदसन खेलने की तैयारी थी। प्रहसन स्वय कैलासनाथ ने लिखा था। वही मुख्य ऐक्टर भी था। इस समय वह एक रेशमी कमीज़ पहने, नगे सिर, नगे पाँव, इधर-से-उधर मित्रों की आव-भगत में लगा हुआ था। कोई पुकारता- कैलास, जरा इधर आना ; कोई उधर से बुलाता - कैलास, क्या उधर ही रहोगे १ सभी उसे छेड़ते थे, वुहले करते थे। बेचारे को ज़रा दम मारने का अवकाश न मिलता था। सहसा एक रमणी ने उसके पास आकर कहा-क्यों कैलास, तुम्हारे साँप कहां हैं ! जरा मुझे दिखा दो। कैलास ने उससे हाथ मिलाकर कहा-मृणालिनी, इस वक्त क्षमा करो, कल दिखा दूंगा। मृणालिनी ने आग्रह किया-जी नहीं, तुम्हें दिखाना पड़ेगा, मैं आज नहीं मानने को, तुम रोज़ कल-कल करते रहते हो। मृणालिनी और कैलास दोनों सहपाठी थे और एक दूसरे के प्रेम में पगे हुए। कैलास को सांपों के पालने, खेलाने और नचाने का शौक था। तरह तरह के साँप पाल रखे थे। उनके स्वभाव और चरित्र की परीक्षा करता रहता था। थोड़े दिन हुए, उसने विद्यालय में 'सांपों' पर एक मारके का व्याख्यान दिया था। सांपों को नचा-