सतो ६९ ? घना हो जाता था। कभी-कभी वह अपने बोदेपन पर झंझला उठता—क्यों ईश्वर ने उसे उन गुणों से वचित रखा, जो रमणियों के चित्त को मोहित करते हैं ? उसे कौन पूछेगा ? उसको मनोव्यथा को कौन जानता है ? पर वह मन में मुँझलाकर रह जाता था। दिखावे की उसमें सामर्थ्य ही न थी। आधी से अधिक रात बीत चुको थी। चिन्ता अपने खीमे में विश्राम कर रही थी। सैनिकगण भी कड़ी मज़िल मारने के बाद कुछ खा-पीकर गाफिल पड़े हुए थे आगे एक घना जगल था। जगल के उस पार शत्रुओं का एक दल डेरा डाले पड़ा था। चिन्ता उसके आने की खबर पाकर भागाभाग चली आ रही थी। उसने प्रात काल शत्रुओं पर धावा करने का निश्चय कर लिया था। उसे विश्वास था कि शत्रुओं को मेरे आने की खबर न होगी , किन्तु यह उसका भ्रम था। उसी की सेना का एक आदमी शत्रुओं से मिला हुआ था। यहाँ की खबरें वहाँ नित्य पहुँचती रहती थीं। उन्होंने चिन्ता से निश्चिन्त होने के लिए एक षड्यन्त्र रच रखा था- उसकी गुप्त हत्या करने के लिए तीन साहसी सिपाहियों को नियुक्त कर दिया था। वे तोनो हिंस्र पशुओं की भांति दबे पाँव जगल को पार करके आये और वृक्षों की आड़ में खड़े होकर सोचने लगे कि चिन्ता का खीमा कौन-सा है। सारी सेना बेखवर सो रही थी, इससे उन्हें अपने कार्य की सिद्धि में लेश-मात्र सन्देह न था। वे वृक्षों की आड़ से निकले, और ज़मीन पर मगर की तरह रेंगते हुए चिन्ता के खीमे की ओर चले। सारी सेना वेखवर सोती थी, पहरे के सिपाही थककर चूर हो जाने के कारण निद्रा में मग्न हो गये थे। केवल एक प्राणी खीमे के पीछे मारे ठण्ड के सिकुड़ा हुआ वैठा था। यह रत्नसिंह था। आज उसने यह कोई नई बात न की थी। पड़ावों में उसकी रातें इसी भौति चिन्ता के खीमे के पीछे बैठे-बैठे कटती थीं। घातकों की आहट पाकर उसने तलवार निकाल ली, और चौंककर उठ खड़ा हुआ। देखा - तीन आदमी झुके हुए चले आ रहे है ! अब क्या करे ? अगर शोर मचाता है, तो सेना में खलबली पड़ जाय, और अंधेरे में लोग एक दूसरे पर वार करके आपस ही में कट मरें। इधर अकेले तीन जवानों से भिड़ने में प्राणों का भय । अधिक सोचने का मौका न था। उसमे योद्धाओं की, अविलम्ब निश्चय कर लेने की शक्ति थी। तुरन्त तलवार खींच ली, और उन तीनों पर टूट पड़ा। कई मिनट तक तलवारें 1 .
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