१३२ मानसोरवर . कपड़ों में से तलवार निकाली और उसके सीने में भोंक दी। इतने में कई आदमी आते हुए दिखाई पड़े । मैं तलवार छोड़कर भागी। तीन वर्ष तक पहाड़ों और जगलों में छिपी रही । बार बार जी में आया कि कहीं डूब मरूँ , पर जान बड़ी प्यारी होती है । न जाने क्या क्या मुसीबतें और कठिनाइयों भोगनी हैं, जिनको भोगने को अभी तक जीती हूँ | अन्त में जब जगल मे रहते-रहते जी उकता गया, तो जोधपुर चली आयी । यहाँ आपकी दयालुता की चर्चा सुनी। आपकी सेवा में आ पहुँची और तब से श्रापकी कृपा से मैं आराम से जीवन बिता रहा हूँ। यही मेरी रामकहानी है। राजनन्दिनी ने लम्बी साँस लेकर कहा-दुनिया में कैसे-कैसे लोग भरे हुए हैं। खैर, तुम्हारी तलवार ने तो उसका काम तमाम कर दिया ? व्रजविलासिनी-कहाँ बहिन ! वह बच गया, जखम श्रोछा पड़ा या । उसी शकल के एक नौजवान राजपूत को मैंने जगल में शिकार खेलते देखा या । यह नहीं मालूम, वही था या और कोई, शकल बिलकुल मिलती थी। कई महीने बीत गये । राजकुमारियों ने जबसे व्रजविलासिनी की रामकहानी सुनी है, उसके साथ वे और मी प्रेम और सहानुभूति का बर्ताव करने लगो हैं। पहले बिना सकोच कभी कभी छेड़छाड़ हो जाती थी , पर अब दोनों हरदम उसका दिल बहलाया करती हैं। एक दिन बादल घिरे हुए थे , राजनन्दिनी ने कहा-आज बिहारीलाल की 'सतसई' सुनने की जी चाहता है। वर्षा ऋतु पर उसमें बहुत अच्छे दोहे हैं । दुर्गाकुँवरि-बड़ी अनमोल पुस्तक है। सखो तुम्हारी बगल मे जो अलमारी रखी है, उसी में वह पुस्तक है, जरा निकालना । व्रजविलासिनी ने पुस्तक उतारी और उसका पहला पृष्ठ खोला था कि उसके हाथ से पुस्तक छूटकर गिर पड़ी। उसके पहले पृष्ठ पर एक तसवीर लगी हुई थी। वह उसी निर्दय युवक की तसवीर थी जो उसके बाप का हत्यारा था। व्रजविलासिनी की आँखें लाल हो गयीं। त्योरी पर बल पड़ गये | अपनी प्रतिज्ञा याद अा गयी , पर उसके साथ ही यह विचार उत्पन्न हुआ कि इस श्रादमी का चित्र यहाँ कैसे आया और इसका इन राजकुमारियो से क्या सम्बन्ध है ? कही ऐसा न हो कि मुके
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