पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१३४

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आभूषण १४६ था। दालान में एक वृद्धा खाट पर पड़ी थी। चारों ओर दरिद्रता के चिह्न दिखाई देते थे। शीतला ने पूछा-यह क्या हुश्रा ? मगला-जो भाग्य में लिखा था। शीतला--कुँवरजी ने कुछ कहा-सुना क्या ? मगला-मुँह से कुछ न कहने पर भी तो मन की बात छिपी नहीं रहती। शीतला-अरे तो क्या अब यहाँ तक नोवत आ गयी ? दुःख की अन्तिम दशा संकोच-हीन होती है । मगला ने कहा-चाहती, तो श्रव भी पढ़ी रहती। उसी घर में जीवन कट जाता। पर जहाँ प्रेम नहीं, पूछ नहीं, मान नहीं; वहाँ अब नहीं रह सकती। शीतला-तुम्हारा मैका कहाँ है ? मगला- -मैके कौन मुंद लेकर जाऊँगी। शीतला [-तव को जाग्रागी ? मगला-ईश्वर के दरबार में। पूढूंगी कि तुमने मुझे सुन्दरता क्यों नहीं दी १ बदसूरत क्यों बनाया ? बहन, स्त्री के लिए इससे अधिक दुर्भाग्य की बात नहीं कि वह रूप हीन हो । शायद पुरखुले जनम की पिशाचिनियाँ ही बदसूरत औरतें होती हैं। रूप से प्रेम मिलता है, और प्रेम से दुर्लभ कोई वस्तु नहीं है । यह कहकर मंगला उठ सड़ी हुई। शीतला ने उसे रोका नहीं । सोचा- इगे क्या विलाऊँगी। अाज तो चूल्हा जलने की भी कोई श्राशा नहीं । उसके जाने के बाद वा देर तक बैठो सोचती रही, मैं कैसी अभ्गगिन है । जिस प्रेम को न पाकर यह वेचारी जीवन को त्याग रही है, उसी प्रेम को मैंने पॉव मे टुकरा दिया ! इसे जेवर की क्या कमी यी १ क्या ये सारे जड़ाऊ जेवर हो सुखी रख सफे? इसने उन्हें पाँव से ठुकरा दिया। उन्हीं ग्राभूषणों के लिए मैंने अपना सर्वस्व खो दिया । दा! न जाने वह (विमलसिंद ) कहाँ हैं, किस - दशा में है! अपनी लालसा को, तृष्णा को व६ कितनी ही बार धिकार चुकी थी। मंगला की दशा देखकर आज उसे आभूषणों से घृणा हो गयी। विमल को घर छोड़े दो साल हो गये। शीतला को अब उनके बारे में