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मानसरोवर
माँति-भाँति की शकाएँ होने लगी थीं। आटों पहर उसके चित्त में ग्लानि और
क्षोम की आग सुलगा करती थी।
दिहात के छोटे-मोटे जमीदारों का काम डाँट-डपट, छीन-झपट ही से
चला करता है। विमल की खेती वेगार में होती थी। उसके जाने के बाद सारे
खेत परती रह गये । कोई जोतनेवाला न मिला। इस खयाल से सामे पर भी
किसी ने न जोता कि बीच में कहीं विमलसिंह आ गये, तो साझेदार को अँगूठा
दिखा देंगे । असामियों ने लगान न दिया । शीतला ने महाजन से रुपये उधार
लेकर काम चलाया । दूसरे वर्ष भी यही कैफियत रही। अबकी महाजन ने
रुपये नहीं दिये । शीतला के गहनों के सिर गयी। दूसरा साल समाप्त होते होते
घर की सब लेई-पूँजी निकल गयी। फाके होने लगे । बूढ़ी सास, छोटा देवर,
ननद और आप- चार प्राणियों का खर्च था। नात-हित भी पाते ही रहते
थे। उस पर यह और मुसीवत हुई कि मैके में एक फौजदारी हो गयी। पिता
और बड़े भाई उसमें फँस गये। दो छोटे भाई, एक बहन और माता, चार
प्राणी और सिर आ पर डटे । गाड़ी पहले मुश्किल से चलती थी, श्रव जमीन
में फंस गयी।
प्रातकाल से कलह का आरम हो जाता। समधिन समधिन से, साले
बहनोई से गुथ जाते । कभी तो अन्न के अभाव से भोजन ही न बनता, कभी
भोजन बनने पर भी गाली गलौज के कारण खाने की नौवत न आती। लड़के
दूसरों के खेतों में जाकर गन्ने और मटर खाते, बूढ़िया दूसरो के घर जाकर
अपना दुखड़ा रोती और ठकुर सोहाती कहती, पुरुष की अनुपस्थिति मे स्त्री के
मैकेवालो का प्राधान्य हो जाता है । इस सग्राम में प्रायः विजय-पताका मैवेवालों
ही के हाथ रहती है। किसी भाँति घर
नाज आ जाता, तो उसे पीसे कौन ?
शीतला की माँ कहती, चार दिन के लिए श्रायी हूँ, तो क्या चक्की चलाऊँ ?
सास कहती, खाने की वेर तो बिल्ली की तरह लपकेंगी, पीसते क्यों जान
निकलती है ? विवश होकर शीतला को अवेले पीसना पड़ता। भोजन के
समय वह महाभारत मचता कि पड़ोसवाते तग आ जाते। शीतला कभी
मों के पैरो पड़ती, कभी सास के चरण पकड़ती, लेकिन दोनो ही उसे झिड़क
देती। माँ कहती, तूने यहाँ बुलाकर हमारा पानी उतार लिया। साठ
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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१३५
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