जुगुनू की चमक
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के ढंग और चेहरे में कुछ ऐसो विलक्षणता थी जिससे रानो को विवश होकर
विश्वास करना पड़ा।
वह बोली-विश्वासघात न करना । यह देखो।
ठाकुर ने दाटार हाथ में ली। उसको उलट-पुलटकर देखा ग्योर चढ़े नम्र
भाव से उसे अाँखों से लगाया । तब रानी के आगे विनीत भाव से सिर मुका-
कर वह बोला-महारानी चन्द्रकुँवरि ?
रानी ने करुण स्वर से कहा-नहीं, अनाथ भिखारिनी । तुम कौन हो ?
सिपाही ने उत्तर दिया-श्रापका एक सेवक !
रानी ने उसकी ओर निराश दृष्टि से देना गोर कहा-दुर्भाग्य के सिवा
इस संसार में मेरा कोई नहीं।
सिपाही ने कहा-महारानीजी, ऐसा न कहिए । पंजाब के सिंह की
महारानी के वचन पर अब भी सैकड़ों सिर झुक सकते हैं। देश में ऐसे लोग
विद्यमान हैं, जिन्होंने चापका नमक खाया है और उसे भूले नहीं है।
रानी-अब इसको इच्छा नहीं । केवल एक शान्त-स्थान चाहती हूँ, जहाँ
पर एक कुटी के सिवा और कुछ न हो।
सिपाही-ऐसा स्थान पहाड़ों में ही मिल सकता है। हिमालय की गोद में
चलिए, वहीं श्राप उपद्रव से बच सकती हैं।
रानी (पाश्चर्य से )-शत्रुओ में जाऊँ ? नै गल कर हमारा मित्र
रहा है?
सिपाहो-राणा जगबहादुर दृढ़प्रतिज्ञ राजपूत हैं।
रानी--किन्तु वही जगवहादुर तो है जो अभी-अभी हमारे विरुद्ध लार्ड
उलटीजी को सहायता देने पर उद्यत था ?
सिपाही (कुछ लजित-सा होकर )---नब आप महारानी चन्द्रकुँवरि था,
आज आप भिखारिनी हैं। ऐश्वर्य के द्वेपी श्योर शत्रु चारों ओर होते हैं। लोग
जलती हुई भाग को पानी से बुझाते हैं, पर रास मापे पर चढ़ाई जाती है।
आर जरा भी सोच-विचार न करें, नेगल में अभी धर्म का लोर नहीं हुआ है।
आप भय-त्याग करें और चलें। देखिए, वह आपको किस माँति सिर ओर
प्रोसो पर बिठाता है।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१५४
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