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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/१६३

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१७४ मानसरोवर दो मल्लाह भी कूद पड़े । सबने डुबकियाँ मारों, टटोला, पर निर्मला का पता न चला। तब डोंगी मँगवाई गयी। मल्लाह ने बार-बार गोते मारे पर लाश हाय न आयी। देवप्रकाश शोक में डूबे हुए घर श्राये। सत्यप्रकाश किसी उपहार की श्राशा में दौड़ा। पिता ने गोद में उठा लिया और बड़े यत्न करने पर भी अपनी सिसक को न रोक सके। सत्यप्रकाश ने पूछा-अम्मा कहाँ हैं । देव०-वेटा, गगा ने उन्हें नेवता खाने के लिए रोक लिया । सत्यप्रकाश ने उनके मुख की ओर जिज्ञासाभाव से देखा और आशय समझ गया । अम्माँ-अम्माँ कहकर रोने लगा। ( २ ) मातृहीन बालक संसार का सबसे करुणाजनक प्राणी है। दीन-से-दीन प्राणियों को भी ईश्वर का आधार होता है, जो उनके हृदय को सम्हालता रहता है। मातृहीन बालक इस आधार से वचित होता है। माता ही उसके जीवन का एकमात्र श्राधार होती है । माता के बिना वह पखहीन पक्षी है । सत्यप्रकाश को एकान्त से प्रेम हो गया । अकेला बैठा रहता । वृक्षों में उसे कुछ कुछ सहानुभूति का अज्ञात अनुभव होता था, जो घर के प्राणियों में उसे न मिलती थी। माता का प्रेम था, तो सभी प्रेम करते थे, माता का प्रेम उठ तो सभी निष्ठुर हो गये। पिता की आँखों में भी वह प्रेम ज्योति न रही । दरिद्र को कौन भिक्षा देता है ? छः महीने बीत गये । सहसा एक दिन उसे मालूम हुआ, मेरी नयी माता आनेवाली हैं। दौड़ा पिता के पास गया और पूछा-क्या मेरी नयी माता आयेंगी। पिता ने कहा-हाँ बेटा, वे आकर तुम्हें प्यार करेंगी ? सत्य-क्या मेरी ही माँ स्वर्ग से आ जायेंगी ? देव०-हाँ, वही माता आ जायेंगी। -मुझे उसी तरह प्यार करेंगी? देवप्रकाश इसका क्या उत्तर देते ? मगर सत्यप्रकाश उस दिन से प्रसन्नमन रहने लगा । अम्माँ आयेंगी ! मुझे गोद में लेकर प्यार करेंगी ! अव मैं उन्हें कमी दिक न करूँगा, कभी जिद न करूँगा, उन्हें अच्छी-अच्छी कहानियाँ गया, सत्य०-- सुनाया करूँगा।