पछतावा In कुछ भूल-चूक हुई उसे क्षमा किया जाय। हम लोग सब हजूर के चाकर हैं सरकार ने हमको पाला-पोसा है । अब भी हमारे ऊपर यही निगाह रहे । कुँवर साहब का उत्साह बढ़ा। समझे कि पण्डित के चले जाने से इन सबों के होश ठिकाने हुए हैं। अब किसका सहारा लेंगे। उसी खुर्राट ने इन सयों को बहका दिया था। कड़ककर बोले-वे तुम्हारे सहायक पण्डित कहाँ गये १ वे पा जाते तो जरा उनकी खबर ली जाती। यह सुनकर मलूका की आँखों में आँसू भर आये। वह बोला--सरकार, उनको कुछ न कहें । वे आदमी नहीं, देवता थे। जवानी की सौगन्ध है, जो उन्होंने श्रापकी कोई निन्दा की हो। वे वेचारे तो हम लोगों को बार-बार सम- झाते थे कि देखो, मालिक से बिगाड़ करना अच्छी बात नहीं । हमसे कभी एक लोटा पानी के रवादार नहीं हुए। चलते-चलते हमसे कह गये कि मालिक का जो कुछ तुम्हारे जिम्मे निकत्ते, चुका देना। आप हमारे मालिक हैं। हमने श्रापका बहुत खाया-पिया है। अब हमारी यही विनती सरकार से है कि हमारा हिसाब-किताब देखकर जो कुछ हमारे ऊपर निकले, बताया जाय । हम एक- एक कौड़ी चुका देंगे, तब पानी पीयेंगे | कुँवर साहब प्रसन्न हो गये। इन्हीं रुपयों के लिए कई बार खेत कटवाने पड़े थे। कितनी बार घरों में आग लगवाई। अनेक बार मारपीट की। कैसे- कैसे दण्ड दिये। अार श्राज ये सब आप-से-आप सारा हिसाब किताब साफ करने पाये हैं। यह क्या जादू है ! मुख्तारआम साहब ने कागजात खोले और असामियों ने अपनी-अपनी पोटलियाँ। जिसके जिम्मे जितना निकला, वे-कान-पूँछ हिलाये उतना द्रव्य सामने रख दिया। देखते-देखते सामने रुपयों का ढेर लग गया । छः सौ रुपया बात-को-बात में वसूल हो गया । किसी के जिम्मे कुछ वाकी न रहा । यह सत्यता और न्याय की विजय यी। कठोरता और निर्दयता से जो काम कमी न हुआ, वह धर्म और न्याय ने पूरा कर दिग्वाया । जबसे ये लोग मुफ़दमा जीतकर आये तभी से उनको रुपया चुकाने की धुन सवार थी। पण्डितजी को वे यथार्थ में देवता समझते थे | रुपया चुका देने के लिए उनकी विशेष प्राशा थी। किसी ने बैल, किसी ने गहने बन्धक रखे।
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२१२
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