पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२३३

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२५६ मानसरोवर 1 के दोस्त दुश्मन सभी होते हैं। अगर मुसाहब लोग उनकी रक्षा का भार न लेंगे, तो कौन लेगा । उन्हें सिर्फ पिस्तौल ही नहीं, और भी छिपे हुए हथियारों से लैस रहना चाहिए । न जाने कब हथियारों की जरूरत आ पड़े, तो वह ऐन वक्त पर कहाँ दौड़ते फिरेंगे? राजा साहब के जीवन के दिन बाकी थे। बादशाह ने निराश होकर कहा- रोशन, इसे कत्ल मत करना, कालकोठरी में कैद कर दो। मुझसे पूछे वगैर इसे दाना पानी कुछ न दिया जाय | जाकर इसके घर का सारा माल-असबाब जब्त कर लो और सारे खानदान को जेल में बन्द कर दो। इसके मकान की दीवारें जमी-दोज करा देना । घर में एक फूटी होड़ी भी न रहने पाये । इससे तो यही कहीं अच्छा था कि राजा साहब ही की जान जाती । खान- दान की बेइज्जती तो न होता, महिलाओं का अपमान तो न होता, दरिद्रता की चोटें तो न सहनी पड़ती! विकार को निकलने का मार्ग नहीं मिलता, तो वह सारे शरीर में पैल जाता है । राजा के प्राण तो बचे, पर सारे खानदान को विपत्ति में डालकर! रौशनुद्दौला को मुँह-माँगी मुराद मिली। उसकी ईर्ष्या कभी इतनी सन्तुष्ट न हुई थी। वह मगन था कि आज वह कॉटा निकल गया, जो बरसो से हृदय में चुभा हुश्रा या । आज हिन्दू राज्य का अन्त हुआ । अब मेरा सिका चलेगा। अब मैं समस्त राज्य का विघाता हूँगा। सध्या से पहले ही राजा साहब की सारी स्थावर और जगम सपत्ति कुर्क हो गयी। वृद्ध माता-पिता, सुकोमल रमणियों, छोटे-छोटे बालक सब-के सब जेल में कैद कर दिये गये। कितनी करुण दशा थी । वे महिलाएं, जिन पर कभी देवताओं की भी निगाह न पड़ी थी, खुले मुँह, नगे पैर, पॉव घसीटती, शहर की भरी हुई सड़कों और गलियों से होती हुई, सिर झुकाये, शोक-चित्रों की भाँति, जेल की तरफ चली जाती थी। सशस्त्र सिपाहियों का एक बड़ा दल साथ था। जिस पुरुष के एक इशारे पर कई घटे पहले सारे शहर में हलचल मच जाती, उसी के ख़ानदान की यह दुर्दशा! ( २ ) राजा बख्तावरसिंह को बंदी-गृह में रहते हुए एक मास बीत गया। वहाँ .