अधिकार-चिता २७५ 1 उसने तीव्र स्वर से उसकी अवहेलना की। उसकी आवाज सुनते ही उसके कई प्रेमी श्रा पहुँचे और.टामी को वहाँ देखते ही जामे से बाहर हो गये। टामी सिटपिटा गया। अभी निश्चय न कर सका था कि क्या करूँ कि चारों ओर से उस पर दाँतों और नखों की वर्षा होने लगी। भागते भी न बन पड़ा। देह लहूलुहान हो गयी । भागा भी, तो शैतानों का एक दल पीछे था । उस दिन से उसके दिल में शका सी समा गयी। हर धड़ी यह भय लगा रहता कि आक्रमणकारियों का दल मेरे सुख और शाति में बाधा डालने के लिए, मेरे स्वर्ग को विध्वस करने के लिए पा रहा है। यह शका पहले भी कम न थी ; अब और भी बढ़ गयी। एक दिन उसका चित्त भय से इतना व्याकुल हुया कि उसे जान पड़ा, शत्रु-दल या पहुँचा । वह बड़े वेग से नदी के किनारे आया और इधर-से-उधर दौड़ने लगा। दिन बीत गया, रात बीत गयी ; पर उसने विधाम न लिया। दूसरा दिन प्राया और गया, पर टामी निराहार, निर्जन नदी के किनारे चक्कर लगाता रहा। इस तरह पाँच दिन बीत गये । टामी के पेर लड़खड़ाने लगे, आँखों तले' अँधेरा छाने लगा। क्षुधा से व्याकुल होकर गिर-गिर पड़ता, पर वह शका किसी भाँति शात न हुई। श्रत में सातवें दिन अभागा टामी अधिकार-चिंता से प्रस्त, जर्जर और शिथिल होकर परलोक सिधारा । वन का कोई पशु उसके निकट न गया। किसी ने उसकी चर्चा तक न को ; फिसो ने उसकी लाश पर आँपू तक न बहाये । कई दिनों तक उस पर गिद और कौए मैंडराते रहे ; अन्त में अस्थिपजरो के सिवा और कुछ न रह गया । %3 2 ---
पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२५२
दिखावट