पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२५४

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दुराशा २७७ श्रा०- लोगों को सामाजिक नोति इतनी पवित्र नहीं है कि कोई स्त्री अपने लज्जामाव को चोट पहुँचाये बिना ही अपने घर से बाहर निकले । या-मेरे विचार में तो पर्वा ही कुचेष्टाओं का मूल कारण है। पर्दे मे स्वमावतः पुरुषों के चित्त में उत्नुकता उत्पन्न होनो है ओर वह भाव कभी तो बोली-ठोली में प्रकट होता है और कमो नेत्रों के कटानों में । द०-जन तक हम लोग इतने हद पतिश न हा जाये कि सतीत्वरक्षा के पीछे प्राण भी यनिदान कर दें तब तक परदे की प्रथा का तोड़ना समाज के मार्ग में विष बोना है। -आपके विचार से तो यही सिद्ध होता है कि यूगेर में सतोत्व रक्षा के लिये रात-दिन रुधिर की नदियाँ वहा करती हैं। द०-वहाँ इसी वेर्दिगो ने तो सतीत्वधर्म को निर्मूल कर दिया है। अभी मैंने किसी समाचारपत्र में पढ़ा था कि एक स्त्री ने किसी पुरुष पर इस प्रकार का अभियोग चलाया था कि उसने मुझे निर्मोकना-पूर्वक कुदृष्टि से घूरा या, किन्तु विचारक ने उस स्त्री को नव शिख से देख कर यह कहकर मुरमा खारिज कर दिया कि प्रत्येक मनुष्य को अधिकार है कि हाट-पाट में नवजवान स्त्री को घूरकर देखे। मुझे तो यह अभियोग और यह फैसला सर्वथा हास्यास्पद जान पढ़ते हैं और किसी भी समाज का निन्दिन करनेवाले हैं। श्रा०-इस विषय को छोड़ो। यह तो बताभा कि इस समय क्या-क्या सिल्लायोगे १ मित्र नहीं तो मित्र की चर्चा ही हो । द०-यह तो सेवतो की पाककला-कुशलता पर निर्भर है। पूरियाँ और कोरियों तो होगो हो । प्रयासम्नर खूप वरी भी होंगो । यथाशक्ति खस्ते और समोसे नी आयेंगे। खोर आदि के बारे में भविष्यवाणी को जा सकता है। आर और गोभी को शोरवेदार तरकारी प्रोर मटर, दालमोठ भी मिलेंगे। फोरिनी के लिए भी का आया था। गूर काकवे ओर बालू के कवाय, यह दानो सेवती खूर पकाती है। इनके सिवा दही बड़े और चटनो-अचार को चर्चा तो व्यर्थ हो है। हाँ, शायद कियामेरा का रायता भी मिले। जिऽमें रेसर की सुगध उड़ती होगी।