पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२८० मानसरोवर 2 द०-ज्वर है क्या ? कबसे आया है ? से०-नहीं, ज्वर-स्वर कुछ नहीं, चैन से बैठी हूँ। ६०-तुम्हारा पुराना बायगोला तो नहीं उभर श्राया ? से०-( व्यग्य से ) हाँ, बायगोला ही तो है । लाश्रो, कोई दवा है ? द०-अभी डाक्टर के यहाँ से मंगवाता हूँ। से०-कुछ मुफ्त की रकम हाथ आ गयी है क्या ? लाओ, मुझे दे दो, अच्छी हो जाऊँ। द०-तुम तो हँसी कर रही हो । साफ-साफ़ कोई बात नहीं कहतीं । क्या मेरे देर से आने का यही दण्ड है ? मैंने नौ बजे आने का वचन दिया था । शायद दो-चार मिनट अधिक हुए हों। सब चीजें तैयार हैं न ? -हाँ, बहुत ही खस्ता । आघो श्राध मक्खन डाला था । द०-आनन्दमोहन से मैंने तुम्हारी खूब प्रशसा की है। से०-ईश्वर ने चाहा तो वे भी प्रशसा ही करेंगे । पानी रख आओ, हाय-वाथ तो धोयें। द०-चटनियाँ मी बनवा ली हैं न १ श्रानन्दमोहन को चटनियों से बहुत प्रेम है। से० खूब चटनी खिलायो । सेरों बना रखी है। द.-पानी में केवड़ा डाल दिया है ? से०–हाँ, ले जाकर पानी रख पाओ। पीना आरम्म करें, प्यास लगी होगी। श्रा०- -( बाहर से ) मित्र, शीघ्र आयो। अब इन्तजार करने की शक्ति नहीं है। द०-जल्दी मचा रहा है। लाओ, थालियाँ परसो । से०--पहले चटनी और पानी तो रख आओ। द-( रसोई में जाकर ) अरे! यहाँ तो चूल्हा बिलकुल ठडा पड़ गया है। महरी श्राज सवेरे ही काम कर गई क्या ? से०-हाँ, खाना पकने से पहले ही आ गई थी। द०-बर्तन सब मजे हुए रखे हैं। क्या कुछ पकाया ही नहीं ?