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पृष्ठ:मानसरोवर भाग 6.djvu/३०

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त्यागी का प्रेम . गोपीनाथ ने नुसखा देखा। डायटरी का साधारण ज्ञान था । नुसत्र से शात हुआ-हृदयरोग है , औषधियों सभी पुणिकर और बलवर्द्धक यी । प्रानन्दी की ओर फिर देखा। उसकी आँखों से अश्रुधारा वह रही थी। उनका गला भी भर आया। हृदय मसोसने लगा। गद्गद होकर बोले-शानन्दी, तुमने मुके पहले इसकी सूचना न दी, नहीं तो राग इतना न बढ़ने पाता। आनन्दी-कोई बात नहीं है, अच्छी हो जाऊँगी, जल्दी ही अच्छी हो जाऊँगी । मर भी जाऊँगी तो कौन रोनेवाला बैठा हुआ है ? यह कहते-कहते वह फूट-फूट रोने लगी। गोपीनाथ दार्शनिक थे; पर अभी तक उनके मन के कोमल भाव शिथिल न हुए थे । कम्पित स्वर से बोले-आनन्दी, संसार में कम-से-कम एक ऐसा आदमी है जो तुम्हारे लिए अपने प्राण तक दे देगा। यह कहते-कहते वह रुक गये। उन्हें अपने शक ओर भाव कुछ भद्दे और उच्छृङ्सल-से नान पड़े । अपने मनोभावों को प्रकट करने के लिए वह इन तारहीन शब्दों की अपेक्षा कहीं अधिक काव्यमय, रसपूर्ण, अनुरक्त शन्दों का व्यवहार करना चाहते थे; पर वह इस वक्त याद न पड़े। आनन्दी ने पुलकिन होकर कहा-~-दो महीने तक किस पर छोड़ दिया था। गोपीनाथ-इन दो महीने में मेरी जो दशा थी, वह मैं ही जानता हूँ। यही समझ लो कि मैंने आत्महत्या नहीं की, यही बड़ा आश्चर्य है। मैंने न समझा था कि अपने व्रत पर स्थिर रहना मेरे लिए इतना कठिन हो जायगा। आनन्दी ने गोपीनाथ का हाय धीरे से अपने हाथ में लाकर कहा-अव तो कभी इतनी कठोरता न कीजिएगा? गोपीनाथ-(सचिन्त होकर ) अन्त क्या है ? आनन्दी-कुछ भी हो! गोपी-कुछ भी हो ? प्रानन्दी-हाँ, कुछ भी हो ! गोपी-अपमान, निन्दा, उपहास, आत्मवेदना । आनन्दी-कुछ भी हो, में सब कुछ सद सकती है, और आपको भी मेरे हेतु सहना पड़ेगा। 1