है --- जब तक तुम रहोगी, घर न आऊँगा। सारा घर सुन्नो का शत्रु हो रहा है।
लेकिन वह वहां से टलने का नाम नहीं लेती। सुना है, केदार अपने बाप के दस्तखत
बनाकर कई हज़ार रुपये बैंक से ले गया है।'
'तुम सुन्नी से मिली थी ?'
'हो, तीन दिन से बराबर जा रही हूँ।'
'वह नहीं आना चाहती, तो रहने क्यों नहीं देती?
'वहाँ वह घुट-घुटकर मर जायगी।'
मैं उन्हीं परों लाला मदारीलाल के घर चला। हालांकि मैं जानता था कि सुन्नी किसी तरह न आयगो, मगर वहाँ पहुचा, तो देखा- कुहराम मचा हुआ है। मेरा कलेजा धक्-से रह गया। वहाँ ता अर्थी सज रही थी। मुहल्ले के सैकड़ों आदमी जमा थे। घर में से 'हाय ! हाय !' की कादन-ध्वनि आ रही थी। यह सुन्नी का शव था।
मदारीलाल मुझे देखते ही मुझसे उन्मत्त की भांति लिपट गये और बोले --- भाई साहब, मैं तो लुट गया। लड़का भी गया, बहू भी गई, ज़िदगी ही ग्रारत हो गई।
मालूम हुआ कि जब से केदार गायब हो गया था, सुन्नी और भी ज्यादा उदास रहने लगी थी। उसने उसी दिन अपनो चूड़ियां तोड़ डाली थी और मांग का सिंदूर पाँछ डाला था। सास ने जब आपत्ति की, तो उनको अपशब्द कहे। मदारोलाल ने समझाना चाहा, तो उन्हें भी जली-कटी सुनाई। ऐसा अनुमान होता था --उन्माद हो गया है। लोगों ने उससे बोलना छोड़ दिया था। आज प्रात काल यमुना स्नान करने गई। अंधेरा था सारा घर सो रहा था। किसी को नहीं लगाया। जव दिन चढ़ गया और बहू घर में न मिली, तो उसकी तलाश होने लगी। दोपहर को पता लगा कि यमुना गई है। लोग उधर भागे। वहाँ उसको लाश मिली। पुलिस भाई, शव की परीक्षा हुई। अब जाकर शव मिला है। मैं कलेजा थामकर बैठ गया। हाय, अभी थोड़े दिन पहले जो सुन्दरी पालकी पर सवार होकर आई थी, आज वह चार के कन्धे पर जा रही है।
मैं अर्थी के साथ हो लिया और वहाँ से लौटा तो रात के दस बज गये थे।
मेरे पाँव काँप रहे थे। माल्म नहीं, यह खबर पाकर गोपा की क्या दशा होगी।
प्राणान्त न हो जाय, मुझे यही भय हो रहा था। सुन्नी उसका प्राण थी, उसके जीवन