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अलग्योझा


लक्ष्मण ने दूसरी बाड़ी में बैठकर कहा-दादा, खींचो।

रग्धू ने झुनियाँ को भी गाड़ी में बैठा दिया और गाढ़ी खींचता हुआ दौ तीन लड़दे तालियाँ बजाने लगे। पन्ना चर्चित नेत्रों से यह दृश्य देख रही थी और सोच रही थी कि यह वृही रवधू है या धीर।

थोड़ी देर के बाद दोनों गाझियाँ लौंटों ; लड़के घर में जाकर इस यानयात्रा के अनुभव बयान करने लगे। कितने खुश थे सब सान हवाई जहाज़ पर बैठ आये हैं।

खुल्लू ने कहा---काकी, सब पेड़ दौड़ रहे थे।

लछमन---और बछियाँ कैसी भाग, सन-की-सेब दौड़ी।

केदार-झाडी, रचू दादा दोन गाड़ियाँ एक साथ च ले जाते हैं।

झुनिया सवते छोटो थी। उसकी व्यञ्जनशक्ति उछल-कूद और नेत्र तक परिमित थी---तालियाँ बजा-जाकर नाच रही थी।

खुन्नू---अब हमारे घर गाय सी आ जायगी झाझी। रग्घू दादा ने विरधारी से कहा है कि इसे एक य ल दो। गिरधारी चौला--कल लाऊँगा।

केदार---तीन से दे देती है काकी। खुब दूध पीयेंगे।

इतने में रग्घू भी अन्दर आ गया। पन्ना ने अवहेला की दृष्टि से देख यूछा--क्यों रग्घू, तुमने गिरधारी से कोई गाय माँग है ?

रग्घू ने क्षमा-प्रार्थना के भाव से कहा- हाँ, माँगी तो है, छल लावेगा।

पन्ना---रुपये जिसके घर से आयेंगे ? यह भी सोचा है ?

रग्घू---सब सोच लिया है की। मेरी यह मौहर नहीं हैं। इसके पच्चीस रुपये मिल रहे हैं, पांच रुपये वडिगा के मुजरा दे दें। वस याय अपनी हो जायगी।

पन्ना सन्नाटे में आ गई। अब उसका अविश्वास मन भी रग्घू के प्रेम और सज्जनता को अस्वीकार न कर सच"। लो---मोहर को क्यों में देते हैं ? गाय की अभी इन दो है। हाथ में पैसे हो जायें, तो हैं लेना सूना-सूना बोला अच्छा न लोया। इतने दिनों राय नहीं रही, तो क्या लड़के नहीं जिये ?

रग्घू दार्शनिक भार से चोली--बच्चे के खाने-पीने के यही दिन हैं काकी। इस उम्र में न वाया, तो फिर क्या वायै। मुहर पहनना मुझे अच्छा भी नहीं