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दिल की रानी


घराने की महिलाओं से उसको मिलने-जुलने का अवसर मिलता था। उनके मुख से उनकी करुण कथा सुन सुनकर वह वैवाहिक पराधीनता से और भी धृणा करने लगती थी और यजदानी उसको स्वाधीनता में बिल्कुल गधा न देता था। लड़की स्वाधीन है उसकी इच्छा हो विवाह करे या क्वारी रहे, वह अपनी आप मुखतार है । उसके पास पेशाम आते, तो बह साफ जवाब दे देता --- मैं इस बारे में कुछ नहीं जानता, इसका फमला वही करेगी। यद्यपि एक युवती का पुरुष वेष में रहना, युवकों से मिलना-जुलना समाज में आलोचना का विषय था; पर यजदानी और उसकी स्त्री दोनों ही को उसके सतीत्व पर विश्वास था। हसीब के व्यवहार और आचार में उन्हें कोई ऐसी बात नज़र न आती थी, जिससे उन्हें किसी तरह को शका होती। यौवन की आंधी और लालसाओं के तूफान में थी वह चौबीस वर्षों को बोलबाला अपने हृदय को सम्पत्ति लिये अटल और अजेय खड़ो थो, मानों सभो युवक उसके सगे भाई हैं।

( ४ )

कुस्तुन्तुनिया में कितनी खुशियां मनाई गई, हबीब का कितना सम्मान और स्वागत हुआ, उसे कितनी बधाइयाँ मिलों, यह सब लिखने की बात नहीं। शहर तबाह हुआ जाता था। सम्भव था, आज उपके महलों और बाजारों से आग की -लपटें निकलती होती। राज्य और नगर को उस कल्पनातीत विपत्ति से बचानेवाला आदमी कितने आदर, प्रेम, श्रद्धा और नल्लास का पात्र होगा, इसको तो कल्पना भी नहीं की जा सकती उस पर कितने फूलों और कितने लाल जवाहर की वर्षा हुई, इसका अनुमान तो कोई कवि ही कर सकता है। और नगर को महिलाएं दृश्य के अक्षय भण्डार से असासे निकाल-निकालकर उस पर लुटाती थी और गर्व से फूली हुई उसका मुख निहारकर अपने को धन्य मानती थी। उसने देवियों का मस्तक ऊँचा कर दिया था।

रात को तैमूर के प्रस्ताव पर विचार होने लगा। सामने गहे दार कुर्सी पर यज- दानो था-सौम्य, विशाल और तेजस्वी। उसको दाहिनी तरफ उसकी पत्नी थी, ईरानी लिबास में, आंखों में दया और विश्वास को ज्योति भरे हुए। बाई तरफ उम्मुतुल हबीब थी, जो इस समय रमणी-वेष में मोहिनी बनी हुई थी, ब्रह्मचर्य के तेज से 'दीप्त।

यज़दानी ने प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा --- मैं अपनी तरफ़ से कुछ नहीं