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मानसरोवर


मुलिया ने फिर कुछ नहीं कहा। जानकर चूल्हा बुझा दिया, रोटियाँ उठाकर छीके पर रख दी और मुंह ढककर लेट रही। ज़रा देर में पन्ना आकर बोली-खाना तो तैयार है, न्हा-धोकर खा लो। वह भी तो भूखी होगी।

रग्घू ने झुंझलाकर कहा काळी, तू घर में रहने देगी कि मुंह में कालिख लगाकर कहीं निकल जाऊँ। खाना तो खाना ही है, आल न खाऊँगा, कल खाऊँगा, लेकिन अभी मुझसे न खाया जायगा। केदार क्या अभी मदरसे से नहीं आया ?

पन्ना---अभी तो नहीं आया, आता ही होगा।

पन्ना समझ गई कि जब तक वह खाना बनाकर लड़कों को न खिलायेगी और खुद न खायी, रग्घू न खायगा। इतना ही नहीं, उसे रचू से लड़ाई करनी पड़ेगी, उसे जली-कटी सुनानी पड़ेगी, उसे यह दिखाना पड़ेगा कि मैं हो उससे अलग होना चाहती हैं, नहीं तो वह इसी चिन्ता में घुल-घुल प्राण दे देगा। यह सोचकर उसले अलग चूल्हा जलाया और खाना बनाने लगी। इतने में केदार और खुन्नू मदर्स से आ गये। पन्ना ने कहा- आओ बेटा, खा लो, रोटी तैयार है।

केदार ने पूछा--भइया को भी बुला लूं ना ?

पन्ना तुम आकर खा लो उनकी रोटी बहू ने अलग बनाई है।

खुन्नू–--जाकर भइया से पूछ न आऊं ?

पन्ना---जब उनका जी चाहेगा, खायँगे। तू बैठकर खा, तुम्हें इन बातों से क्या मतल। जिसका जी चाहेगा खायगा, जिसका जी ने चाहेगा, न खाया। जब वह और उसकी बीवी अलग रहने पर तुले हैं, तो कौन मनाये ?

केदार---तो क्यों अम्माँजी, क्या हम अलग घर में रहेंगे ? पन्ना-उनका जी चाहे, एक घर में रहे, जी चाहे, अनि में दीवार डाल लें।

खुन्नू ने दरवाजे पर आकर झोका, सामने फूस की झोपड़ी थी, वहीं खाट पर पड़ा रघु नारियल पी रहा था।

खुन्नू–--भइया तो अभी नारियल लिये बैठे हैं।

पन्ना---जब जी चाहेगा, खायेंगे।

केदार--- भइया ने भाभी की डाँटा नहीं है।