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मानसरोवर


दृश्य में आज जीवन था, विकास था, उन्माद था। केवट का वह सूना झोपड़ा भो आज कितना सुहावना ला रहा था। प्रकृति में मोहिनी भरी हुई थी।

मन्दिर के सामने मुनिया राजकुमारों को खिला रही थी। वसुधा के मन में आज कुलदेव के प्रति श्रद्धा जागृत हुई, जो बरसों से पड़ी सो रही थी। उसने पूजा के सामान मँगवाये और पूजा करने चली। आनन्द से भरे भण्डार से अब वह दान भी कर सकती थी। जलते हुए हृदय से ज्वाला के सिवा और क्या निकलती।

उसी वक्त कुँअर साहब आकर बोले --- अच्छा, पूजा करने जा रही हो ? मैं भी वहीं जा रहा था। मैंने एक मनौती मान रखी है।

वसुधा ने मुसकिराती हुई आँखों से पूछा --- कैसी मनौती है ?

कुंअर साहब साहब ने हसकर कहा यह न बताऊंगा।