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आखिरी हीला


है, आज-कल लगान तो बन्द हो हो रहा है। लगान देने की परत ही नहीं। अगर किसी संस्कार का बहाना करता हूँ, तो फरमाते हैं, तुम भी विचित्र जीव हो। कुप्रधाओं की लकीर पीटना तुम्हारी शान के खिलाफ है। अगर तुम उनका मूलोच्छेदन करोगे, तो वह लोग क्या आकाश से आगे? परत यह कि किसी तरह प्राण नहीं बचते ।

मैंने समझा था कि हमारा यह बहाना निशाने पर बैठेगा। ऐसे घर में कौन रमणी रहना पसन्द करेगी, जो मित्रों पर ही अर्पित हो गया हो। किन्तु मुझे फिर श्रम हुआ । उत्तर में फिर वही आग्रह था।

तब मैंने चौथा होय सोचा। यहाँ के मकान हैं कि चिधियों के पिंजरे, न हवा, न रोशनी । वह दुर्गन्ध उस्तो है कि खोपड़ी भन्ना जाती है। कितने ही के तो इसी दुर्गन्ध के कारण विशूचिका, टाइफाइड, यक्ष्मा आदि रोग हो जाते हैं। वर्षा हुई और मकान टपकने लगा। पानी चाहे घण्टे भर बरसे, मकान रात-भर बरसता रहता है। ऐसे बहुत धम घर होंगे, जिनमें प्रेत-माधाएं न हों। लोगों को डरावने स्वप्न दिखाई देते हैं। कितनों हो को उन्माद रोग हो जाता है । आज नये घर में आये, कल ही उसे बदलने की चिन्ता सवार हो गई। कोई ठेला असबाब से लदा हुआ जा रहा है, 'जिधर देखिए, ठेले-ही ठेळे नजर आते हैं। चोरियां तो इस कसरत से होती हैं कि भार कोई रात कुशल से बीत जाय, तो देवतामों को मनौती को जाती है। माधो रात हुई और चोर चोर ! लेना लेना की आवाजें आने लगों ! लोग दरवाओं पर मोटे- मोटे लफड़ो के फ? या जूते या चिमटे लिये खड़े रहते हैं। फिर भी चोर इतने कुशल हैं आँख बचाकर अन्दर पहुँच ही जाते हैं । एक मेरे बेतकल्लुफ दोस्त हैं, स्नेहवश मेरे पास बहुत देर तक बैठे रहते हैं। रात अंधेरे में बर्तन खड़के, तो मैंने बिजली की बत्ती जलाई । देखा तो बहो महाशय मर्तन समेट रहे हैं। मेरो भावाज सुनकर जोर से कहकहा मारा और केले, मैं तुम्हे चकमा देना चाहता था। मैंने दिल में समझ लिया, मगर निकल जाते, तो वर्तन आपके थे, जब जाग पड़ा तो चकमा हो गया। घर में आये कैसे थे, यह रहस्य है । कदाचित् रात को ताश खेलकर चले, तो बाहर जाने के बदले नीचे अंधेरी कोठरी में छिप गये। एक दिन एक महाशय मुमसे पत्र लिखवाने आये, कमरे में कलम-दावात न था। अपर के कमरे से लाने गया। लौटकर आया तो देखा, आप गायब हैं और उनके साथ फाउन्टेन भी गाया है । सारांश यह कि नगर-जीवन नरक जीवन से कम दुःखदायी नहीं है।