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गिला


बरकत है कि सभी लड़के अच्छे-अच्छे पदों पर पहुँच स्वास्थ्य किसी का अच्छा नहीं है। तो पिताजी ही का स्वास्थ्य कौन बना अच्छा था! बेचारे हमेशा किसी-न-किसी औषधि का सेवन करते रहते थे। और क्या कहूँ , एक दिन तो हद ही हो गई । श्रीमान् जी लड़कों को कनकौवा वड़ाने को शिक्षा दे रहे -यो घुमाओ, पों गोता दो, यो खोंचो, यो ढल दो। ऐसा तन-मन से सिबारहे थे, मानों गुरु मन्त्र दे रहे हों। उस दिन मैंने इनको ऐसी खापर लो कि याद करते होंगे--तुम कौन होते हो मेरे बच्चों को बिगाड़नेवाले ! तुम्हे घर से कोई मतलब नहीं है, न हो; लेकिन आप मेरे बच्चों को खराब न कीजिए। बुरी बुरी आदतें न सिखाइए। आप उन्हें सुधार नहीं सकते, तो कम-से-कम निगाडिए मत। लगे गले माकने । मैं चाहती हूँ. एक बार यह भी गरम पड़ें, तो अपना बाडोरूप दिखाऊँ । पर यह इतना जल्द दक्ष जाते हैं कि मैं हार जातो हूँ। पिताजी किसी लड़के को मेले-तमाशे न जाते थे। लड़का सिर पटककर मर जाय; मगर जरा भी न पसीजते थे और इन महात्माजी का यह हाल है कि एक-एक से पूछकर मेले ले जाते हैं-चलो, चलो, वहाँ वो बहार है, .खूप आतशबाजियां छूटेंगी, गुब्बारे उड़ेंगे, विलायतो चरखियाँ भी हैं । उन पर मजे से बैठना । और तो और, आप लड़कों को हाको खेलने से भी नहीं रोकते । यह अग्रेजो खेल भो कितने जानलेवा होते हैं, क्रिकेट, फुटवाल, हाको, एक से एक घातक । गेंद ला जाय तो जान लेकर हो छोड़े, पर आपको इन सभी खेलों से प्रेम है । कोई लड़का मैच में जोतकर आ जाता है, तो ऐसे फूल उठते हैं, मानो शिला फ़तह कर आया हो। मापको इसकी परा भी परवा नहीं कि चोट- चपेट खा गई, तो क्या होगा। हाथ-पांच टूट गये, तो बेवारों को जिन्दगी कैसे पार लगेगी !

पिछले साल कन्या का विवाह था। स्थापछो जिद थी कि दहेज के नाम ज्ञानी कौसो भी न देंगे, चाहे कन्या आजीवन क्यारो बैठो रहे । यहाँ भी आपका आदर्श- वाद आ कूदा । समाज के नेताओं का छल-प्रपश्च आये दिन देखते रहते हैं, फिर भी आपकी आँखें नहीं खुलती । जब तक समाज की यह व्यवस्था कायम है, और युक्तों कन्या का अविवाहित रहना निन्दास्पद है, तब तक यह प्रथा मिटने की नहीं दो-चार, ऐसे व्यक्ति भले ही निकल आयें, जो दहेज के लिए हाथ न फैलायें, लेकिन इसका परिस्थिति पर कोई असर नहीं पड़ता और कुप्रथा ज्यों-की-ज्यों बनी हुई है। पैसों