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मानसरोवर


भिखारिन ने अपनी झोली फैला हो। प्रकाश ने भूसा उसकी झोली में डाल दिया और जोर-जोर से तालियाँ बजाता हुआ भागा।

भिखारिन ने अग्निभय नेत्रों से देखकर कहा- वाह रे लाड़ले ! मुझसे हँसी करने चला है। यही माँ-बाप ने सिखाया है। तब तो खूब कुल का नाम जगाओगे !

करुणा उसकी बोलो सुनकर बाहर निकल आई, और पूछा-क्या है माता ? किसे कह रही हो ?

भिखारिन ने प्रकाश की तरफ इशारा करके कहा---वह तुम्हारा लड़का है न। देखो, कटोरे में भूसा भरकर मेरी कोलो में डाल गया है। चुटकी-भर आटा था, वह भी मिट्टी में मिल गया । कोई इस तरह दुखियों को सताता है ? सबके दिन एकसे नहीं रहते। आदमी को घमण्ड न करना चाहिए।

करुणा ने कठौर स्वर में पुकारा---प्रकाश।

प्रकाश लज्जित न हुआ। अभिमान से सिर उठाये हुए आया और बोला--- यह शुमारे घर भीख माँगने क्यों हैं हैं है कुछ काम क्यों नहीं करती है।

करुणा ने उसे समझाने की चेष्टा करके कहा--- शर्म तो नहीं आती, उलटे और आँखें दिखाते हो।

प्रकाश शर्म क्यों आये है यह क्यों रोज भीख मांगने आती है ? हमारे यहाँ या कोई चीज़ मुफ्त आती है !

करुणा --- तुम्हें कुछ न देना था तो सीधे से कह देते, जाओ। तुमने यह शराएल क्यों की ?

प्रकाश--- उसकी आदत कैसे छूटती है।

करुणा ने बिगड़कर कहा--- तुस अब पिटोगे मेरे हार्थो।

प्रकाश---पिहँगा क्यो, अप जबरदस्ती पीटेंगी ? दूसरे मुल्कों में अगर कोई भीख योगे, तो ॐद कर दिया जाय। यह नहीं कि उलटे भिखमंग को और शह दिया जाय। करुणा--जो अपग है, वह कैसे काम करे ?

प्रकाश---तो जाकर डूब सरे, ज़िन्दा क्यों रहती है।

‘करुणा निरुतर हो गई। बुढ़िया को तो उसने आटा-दाल देकर विदा किया ; एफन्तु प्रकाश वा कुतर्क उसके हृदय में फोड़े के समान टीसता रहा। इसने यह धृष्टता, यह अविनय कहाँ सीखा। रात को भी उसे बार-बार यही खयाल सताता रहा है।