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बेटोंवाली विधवा


कामतानाथ ने निस्सङ्कोच होकर कहा --- शरमाऊँ क्यों, किसी की चोरी की है? चीनी में चींटे और आटे में घुन, यह नहीं देखे जाते। पहले हमारी निगाह न पड़ी, बस यही बात बिगड़ गई। नहीं, चुपके-से चुहिया निकालकर फेंक देते। किसी को खबर भी न होती।

फूलमती ने चकित होकर कहा --- क्या कहता है, मरी चुहिया खिलाकर सबका धर्म बिगाड़ देता।

कामता हंसकर बोला --- क्या पुराने माने की बात करती हो अम्मा ? इन बातों से धर्म नहीं जाता ? यह धर्मात्मा लोग जो पत्तल पर से उठ गये हैं, इनमें ऐसा कौन है जो भेवकी का मांस न खात हो? तालाब के कछुए और घोंघे तक तो किसो से बचते नहीं। जग-सी चुहिया में क्या रखा था!

फूलमती को ऐसा प्रतीत हुआ कि अप प्रलय आने में बहुत देर नहीं है। जा पढ़े-लिखे आदमियों के मन में ऐसे अधामि भाव आने लगे, तो फिर धर्म को भग- वान् ही रक्षा करें। अपना-सा मुंह लेकर चली गई।

( २ )

दो महीने गुज़र गये हैं। रात का समय है। चारों भाई दिन के काम से छुट्टी पाकर कमरे में जेठे गप शप कर रहे हैं। बड़ो बहू भो षड्यंत्र में शरीक हैं। कुमुद के विवाह का प्रश्न छिड़ा हुआ है।

कामतानाथ ने मसनद पर टेक लगाते हुए कहा --- दादा को पात दादा के साथ गई। मुरारी पण्डित विद्वान् भी हैं और कुलीन भी होंगे। लेकिन जो आदमी अपनी विद्या और कुलीनता को रुपयों पर बेचे, बह नीच है। ऐसे नीच आदमी के लड़के से हम कुमुद का विवाह सेंत में भी न करेंगे, पांच हजार तो दूर की बात है। उसे बताभो धता और किसी दूसरे वर की तलाश करो। हमारे पास फुल बीस हजार हो तो हैं।ं एकाएक हिस्से में पांच-पांच हजार आते हैं। पांच हजार दहेज में दे दें, और पांच हजार नेग-न्योछावर, बाजे-गाजे में उड़ा दें, तो फिर हमारो बधिया ही बैठ जायगी।

उमानाथ बोले --- मुझे अपना औषधायल खोलने के लिए कम-से-कम पांच हज़ार की जरूरत है। में अपने हिस्से में से एक पाई भी नहीं दे सकता। फिर खुलते हो आमदनी तो होगी नहीं। कम-से-कम साल-भर घर से खाना पड़ेगा।