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विद्रोही

चचा साहब ने माथा सिकोडकर कहा-इसमे मजाक की तो कोई बात नहीं । मैं आपके सामने चौधरी से बातें कर सकता हूँ। .

विमल-बाबूजी, आपने तो यह नया प्रश्न छेड़ दिया। मुझे तो स्वप्न में भी गुमान न था कि हमारे और आपके बीच मे यह प्रश्न खड़ा होगा। ईश्वर ने आपको बहुत कुछ कर दिया है। दस-पाँच हज़ार में आपका कुछ न बनेगा। हां, यह रकम मेरी सामर्थ्य से बाहर है। मैं तो आपसे दया ही की भिक्षा मांग सकता हूँ। आज दस-बारह साल से हम कृष्णा को अपना दामाद समझते आ रहे है। आपकी बातों से भी कई बार इसको तसदीक हो चुकी है। कृष्णा और तारा मे जो प्रेम है, वह आपसे छिपा नहीं। ईश्वर के लिए थोड़े से रुपयो के वास्ते कई जनों का खून न कीजिए।

चाचा साहब ने दृढता से कहा- विमल बाबू, मुझे खेद है कि मैं इस विषय मे और नहीं दब सकता।

विमल बाबू ज़रा तेज होकर बोले-आप मेरा गला घोंट रहे है !

चचा-आपको मेरा एहसान मानना चाहिए कि कितनी रियायत कर रहा हूँ।

विमल- क्यो न हो, आप मेरा गला घोटें और मैं आपका एहसान मान ! मैं इतना उदार नहीं हूँ, अगर मुझे मालूम होता कि आप इतने लोभी हैं, तो आपसे दूर हो रहता । मैं आपको सज्जन समझता था। अब मालम हुआ कि आप भी कौड़ियों के गुलाम है । जिसकी निगाह मे मुरोक्त नही, जिसकी बातों का कोई विश्वास नहीं, उसे मैं शरीफ नहीं कह सकता। आपको अख्तियार है, कृष्णा वावू को शादी जहाँ चाहे करें , लेकिन आपको हाय न मलना पड़े, तो कहिएगा। तारा का विवाह तो कहीं-न कहीं हो ही जायगा, और ईश्वर ने चाहा, तो किसी अच्छे ही घर होगा। संसार से सज्जनो का अभाव नहीं है , मगर आपके हाथ अपयश के सिवा और कुछ न लगेगा।

चचा साब ने त्यौरियां चढाकर कहा-अगर आप मेरे घर मे न होते तो इस अपमान का कुछ जवाब देता।

विमल बाबू ने छड़ी उठा ली और कमरे से बाहर जाते हुए कहा-आप मुझे क्या जवाब देंगे ? आप जवाब देने के योग्य ही नहीं है।

उसी दिन शाम को जब मैं वैरक से आया और जलपान करके विमल बाबू के