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मानसरोवर


हँसमुख थी, बहुत ही सहनशील , लेकिन उसके साथ ही मानिनी भी परले सिरे की। मुझे खिलाकर भी खुद न खाती, मुझे हँसाकर भी खुद न हँसती।

इण्टरमीडिएट पारा होते ही मुझे फौज मे एक जगह मिल गई। उस विभाग के अफसरों में पिताजी का बड़ा मान था। मैं सार्जन्ट हो गया और सौभाग्य से लखनऊ ही मे मेरी नियुक्ति हुई । मुँह-माँगी मुराद पूरी हुई।

मगर विधि-वाम कुछ और ही षड्यन्त्र रच रहा था। मैं तो इस खयाल मे मगन था कि कुछ दिनों में तारा मेरी होगी। उधर एक दूसरा ही गुल खिल गया। शहर के एक नामी रईस ने चचाजी से मेरे विवाह की बात छेड़ दो और आठ हजार रुपये दहेज का वचन दिया। चचाजी के मुंँह से लार टपक पड़ी । सोचा, यह आशातीत रकम मिलती है, इसे क्यों छोड़ूँ । विमल बाबू की कन्या का विवाह कहीं-न-कहीं हो ही जायगा। उन्हे सोचकर जवाब देने का वादा करके विदा किया और विमल बाबू को बुलाकर बोले - आज चौधरी साहब कृष्णा की शादी की बातचीत करने आये थे। आप तो उन्हें जानते होंगे। अच्छे रईस हैं । आठ हजार रुपये दे रहे हैं। मैंने कह दिया है, सोचकर जवाब दूंँगा । आपकी क्या राय है ? यह शादी मँजूर कर लूँ?

विमल बाबू ने चकित होकर कहा- यह आप क्या फरमाते हैं ? कृष्णा की शादी तो तारा से ठीक हो चुकी है न ?

चचा साहब ने अनजान बनकर कहा-यह तो मुझे आज मालूम हो रहा है। किसने ठीक की है यह शादी ? आपसे तो मुझसे इस विषय मे कोई बातचीत नहीं हुई।

विमल बाबू जरा गर्म होकर बोले- जो बात आज दस-बारह साल से सुनता आता हूँ, क्या उसकी तसदीक भी करनी चाहिए थी ? मैं तो इसे तय समझे बैठा हूँ। मैं ही क्या, सारा मुहल्ला तय समझ रहा है।

चचा साहब ने वदनामी के भय से ज़रा दबकर कहा-भाई साहब, हक तो यह है कि मैं जब कभी इस सम्बन्ध की चर्चा करता था, दिल्लगी के तौर पर था, लेकिन खैर, मैं आप को निराश नहीं करना चाहता । आप मेरे पुराने मित्र हैं। मैं आपके -साथ सब तरह की रियायत करने को तैयार हूँ। मुझे आठ हजार मिल रहे है । आप मुझे सात हजार ही दीजिए- छ हजार ही दीजिए।

विमल वाबू ने उदासीन भाव से कहा--आप मुझसे मज़ाक कर रहे हैं, या सच- मुच दहेज मांँग रहे हैं ? मुझे यकीन नहीं आता।