पृष्ठ:मानसरोवर २.pdf/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५८
मानसरोवर

'सभव है, प्रजा की दुःख-कथा सुनकर उन्हे कुछ दया आये ?'

मि० मेहता को इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी। वह तो ख़ुद चाहते थे कि किसी तरह अन्याय का बोझ उनके सिर से उतर जाय । हाँ, यह भय अवश्य था कि कहीं जयकृष्ण की सत्प्रेरणा उनके लिए हानिकर न हो, और कहीं उन्हें इस सम्मान और अधिकार से हाथ न धोना पढे । बोले- यह खयाल रखना कि तुम्हारे मुंह से कोई ऐसी बात न निकल जाय, जो महाराज को अप्रसन्न कर दे।

जयकृष्ण ने उन्हे आश्वासन दिया-वह ऐसी कोई बात न करेगा । क्या वह इतना नादान है , मगर उसे क्या खबर थी कि आज के महाराजा साहब वह नहीं हैं, जो एक साल पहले थे। या संभव है. पोलिटिकल एजेंट के चले जाने के बाद फिर हो जायें। वह न जानता था कि उनके लिए क्रान्ति और आतंक की चर्चा भी उसी तरह विनोद की वस्तु थी, जैसी हत्या या बलात्कार या जाल की वारदातें या रूप के बाज़ार के आकर्षक समाचार । जब उसने ड्योढी पर पहुँचकर अपनी इत्तला कराई, तो मालूम हुआ कि महाराज इस समय अस्वस्थ हैं, लेकिन वह लौट ही रहा था कि महाराज ने उसे बुला भेजा । शायद उससे सिनेमा-संसार के ताजे समाचार पूछना चाहते थे । उसके सलाम पर मुसकिराकर बोले--तुम खूब आये भई, कहो एम० सी० सी० का भैच देखा या नहीं ? मैं तो इन बखेड़ो में ऐसा फंसा कि जाने की नौबत ही नहीं आई । अब तो यही दुआ कर रहा हूँ कि किसी तरह एजेंट साहब खुश-खुश रुखसत हो जायें। मैंने जो भाषण लिखवाया है, वह जरा तुम भी देख लो । मैंने इन राष्ट्रीय आन्दोलनों की खूध खबर ली है और हरिजनोद्धार पर भी छींटे उडा दिये हैं।

जयकृष्ण ने अपने आवेश को दबाकर कहा-- राष्ट्रीय आन्दोलनो की आपने खबर ली, यह अच्छा किया, लेकिन हरिजनोद्धार को तो सरकार भी पसन्द करती है; इसी लिए उसने महात्मा गांधी को रिहा कर दिया, और जेल में भी उन्हें इस आदोलन के सम्बन्ध में लिखने-पढने और मिलने जुलने की पूरी स्वाधीनता दे रखी थी।

राजा साहब ने तात्त्विक मुस्कान के साथ कहा - तुम जानते नहीं, यह सब प्रदर्शन-मात्र हैं। दिल में सरकार समझती है कि यह भी राजनैतिक आदोलन है। वह इस रहस्य को बड़े ध्यान से देख रही है । लायलटी में जितना प्रदर्शन करो, चाहे वह औचित्य की सीमा के पार ही क्यों न हो जाय, उसका रंग चीखा ही होता है।