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मानसरोवर


क्या । तुमसे मिलने की बहुत दिनों से इच्छा थी । याद करो वह मकतबवाली बात, जब तुम मुझे पढ़ाया करते थे। तुम्हारी बदौलत चार अक्षर पढ़ गया और अपनी जमींदारी का काम सँभाल लेता हूँ, नहीं सूरख ही बना रहता। तुम मेरे गुरु हो भाई, सच कहता हूँ। मुझ जैसे गधे को पढाना तुम्हारा ही काम था। न जाने क्या चात्त थी कि मौलवी साहब से सबक पढकर अपनी जगह पर आया नहीं कि बिलकुल साफ । तुम जो पढाते थे, वह बिना याद किये ही याद हो जाता था। तुम तब भी बड़े जहीन थे।

यह कहकर उन्होंने मुझे सगर्व नेत्रों से देखा ।

मैं बचपन के साथियो को देखकर फूल उठता हूँ। सजल नेत्र होकर बोला- मैं तो जर तुम्हे देखता हूँ, तो यही जी में आता है कि दौड़कर तुम्हारे गले लिफ्ट जाऊँ । ४५ वर्ष का युग मानो बिलकुल गायब हो जाता है। वह मकतव आँखो के सामने फिरने लगता है, और बचपन सारी मनोहरताओं के साथ ताजा हो जाता है ।

बलदेव ने भी द्रवित कण्ठ से उत्तर दिया-मैंने तो भाई, तुम्हें सदैव अपना इष्टदेव समझा है । जब तुम्हें देखता हूँ, तो छाती गज-भर की हो जाती है कि वह मेरा बचपन का सगी जा रहा है, जो समय आ पड़ने पर कभी दया न देगा। तुम्हारी चडाई सुन-सुनकर मन-ही-मन प्रसन्न हो जाता हूँ; लेकिन यह बताओ, क्या तुम्हें खाना नहीं मिलता है? कुछ खाते-पोते क्यों नहीं ? सूखते क्यों जाते हो ? घी न मिलता हो, तो दो-चार कनस्टर भिजवा दूं । अब तुम भी बूढ़े हुए, खूब डटकर खाया करो। अब तो देह में जो कुछ तेज और बल है, वह केवल भोजन के अधीन है। मैं तो अब भी सेर-भर दूध और पाव-भर धी उड़ाये जाता हूँ। इधर थोडा मक्खन भी खाने लगा हूँ। जिन्दगी-भर बाल-बच्चों के लिए मर मिटे, अब कोई यह भी नहीं पूछता, तुम्हारी तबीयत कैसी है ; अगर आज कघा डाल दूं, तो कोई एक लोटे पानी को न पूछे , इसलिए खूब खाता हूँ और सबसे ज्यादा काम करता हूँ। घर पर अपना रोब बना हुआ है। वही जो तुम्हारा जेठा लड़का है, उस पर पुलिस ने एक झूठा मुकदमा चला दिया है। जवानी के मद में किसीको कुछ समझता नहीं । है भी अच्छा खासा पहलवान । दारोगाजी से एक बार कुछ कहा-सुनी हो गई। तबसे घात थे । इधर गाँव मे एक डाका पड़ गया । दारोगाजी ने तहकीकात में उसे भी फांस लिया । आज एक सप्ताह से हिरासत मे है । सुकदमा मुहम्मद खलील डिप्टी